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साधन से सिद्धियों की प्राप्ति
क करने से करीब एक घंटा पहले आखिरी बार छाछ ले ली थी । त्राटक के
महसूस हुआ कि दिन में
अब उतनी तीक्षणता
बाद जब दस बजे में सोने जगा तब अचानक मुझे ऐसा मुझे जितनी तेज भूख लगी थी अब उतनी नहीं है या उसमें नहीं हैं। हालाकि मेरा पेट अब भी पीठ से ही लगा था। खर कारण जो भी हो, इस बात को सोने से पहले स्पष्ट रूप से मैंने अनुभव किया था । इसी बात को सोचते-सोचते शायद मुझे नींद आ गयी होगी। चूंकि बबुआ सिगरेट पीता था । इसलिए वह अपने बिस्तर बाहर वाले बरामदे में जो कि सड़क या गंगा की ओर था लगाकर वहीं सो जाता था और कमरे को बाहर से ताला लगा देता था मुझे यदि कहीं बाथरूम वगैरहा जाना होता तो मैं पिछले दरवाजे से निकल कर चला जाता था, जिसकी चिटकनी कमरे के अन्दर से वह लगा जाता था ।
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आज भी बबुआ इसी प्रकार बाहर बरामदे में सोया हुआ था । रात्रि को . सोते हुए मुझे एक अजीब सा स्वप्न दिखाई दिया, जिसके अनुसार मैं और अन्य लोग शमशान में थे, किसी शव की दाह-क्रिया का दृष्य था । तब क्या देखता हूँ कि जिस शव को जलाया जा रहा था उसकी अग्नि तो समाप्त हो गयी थी लेकिन मुर्दा अभी पूर्ण रूप से जला नहीं था । जब मैंने और गौर से देखने की कोशिश की तो मैं इस दृष्य को देखकर सकते में आये बिना नहीं रह सका क्योंकि मुर्दे के रूप में मेरे वहीं अस्थे ताऊजी थे, जिनकी मृत्यु करीब दस पहले ही हो गयी थी। अब तो मैंने उनको और गौर से देखा तो एक और भी आश्चर्य की बात मेरे सम्मुख आयी कि उस arit हालत में भी वे जीवित थे । जब मैंने उनको आवाज देकर पुकारा तो वे बोले भी और उन्होंने मेरी आवाज के प्रत्युत्तर में उत्तर भी दिया तो मुझे उनके जीवित होने में कोई सन्देह नहीं बचा तो मैंने पुकार कर अन्य व्यक्तियों को बुलाया और उन्हें दिखाकर कहा,. ." आपने यह क्या कर दिया अब ऐसी हालत में न तो इनको बचा सकते हैं और न ही इनको जला सकते हैं ।" बड़ी बैचेनी हो उठी । इसी बेचेनी की अवस्था में ही मेरी निद्रा खुल गई । लेकिन मेरा मस्तिष्क उसी स्वप्न के चिन्तन में लगा रहा और बिना आँखें खोले पड़ा रहा। कुछ देर बाद मैंने किवाड़ों की आवाज सुनों ओर लगा कि बबुआ बाहर के किवाड़ों को खोलकर बाथरूम जाने के लिये कमरे में आया है और इसलिए पिछले दरवाजे से बाथरूम गया है लेकिन काफी देर बाद जब वह नहीं लौटा तो मैंने सोचा क्या बात है ? मैंने आँख खोली तो एक
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