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साधन से सिद्धियों की प्राप्ति
१२५.
तो बुक करा आना । अगर आगे को मिले तो वापिस भरतपुर चलेंगे।
एक बात और जो मुझे बबुआ के कानों में डालनी थी १५ मुण्डा वाली लेकिन उसके सीधे सोधे कहने में मुझे एक शंका खड़ी हो गयी थी। वह यह कि अगर यह बात सत्य निकल आती है तो यह फिर जिन्दगी भर मेरा पीछा उस रूप में नहीं छोड़ने वाला है । रही बात किसी के भले और बुरे की, ईश्वर की इच्छा के बिना कौन किसी का भला चाह सकता है और कोन किसी का बुरा कर सकता है लेकिन फिर भी इतना तो मैं अपने से भी इच्छा रखता था कि थोड़ा सा इशारा इसको अवश्य दिया जावे जिसके जब वह बात यदि सत्य निकले तो उसको याद दिलाकर तपस्या की प्राप्ति की ओर इशारा दिखाया जा सके ।
इसलिये काफी सोच समझकर तथा अपने आपको बिल्कुल सहज बनाते हुये बहुत ही सहज भाव में मैंने बातचीत के दौरान बबुआ से बूछा, "क्यों बबुआ मुण्डे कितने और कौन से होते हैं ? “वह बोला, “एक से नौ तक के होते हैं।" बात आयी गई हो गई। अगले दिन बारह मई को बारह बजे की सीट लेकर हम बद्रीनाथ रवाना हुये । रात्रि को किसी जगह रूककर तेरह तारीख को दोपहर दो बजे बद्रीनाथ पहुंचे । सीधे गर्म कुण्ड पर जाकर स्नान किया। स्नान करने के बाद हम ३ बजे मन्दिर की सीढ़ियों पर पट खुलने का इन्तार कर रहे थे। साढ़े तीन बजे से दर्शन शुरू हुये । चार बजे प्रसाद वगैराह लेकर प्रसन्न चित्त वापिस बस स्टेण्ड की तरफ इसलिये चल दिये शायद वापसी के लिये कोई बस मिल जावे और ऐसा ही हुआ । पौने पाँच बजे के करीब आखिरी बस हमें मिल गई । इस प्रकार हमने तेरह तारीख को ही बापिस ऋषिकेश की ओर लौटना शुरू कर दिया। रात्रि में फिर रास्ते में रूके । चौदह तारीख को ग्यारह या बारह बजे दोपहर को ऋषिकेश,
आ गये। ऋषिकेश से हरिद्वार आये वहाँ से बम्बई देहरादून हमसे निकल गई थी। हमने बस में बैठकर दिल्ली की यात्रा शुरू की, नई दिल्ली स्टेशन से हमें वह देहरादून मिल गई । इस प्रकार १५ तारीख की सुबह साढ़े चार बजे या पांच बजे लेट होने की वजह से हम भरतपुर में थे। दिन भी शुक्रवार था। अभी तक तो सारी की सारी बातें सच हो सिद्ध होती जा रही थी। करीब तीन-चार दिन बाद मैंने.. बबुआ से पूछा कि "बबुआ जिस दिन हम आये थे उस दिन यहां हंडिया खुली.
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