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साधन से सिखियों की प्राप्ति
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आज तो पता नहीं यहां मगर आ गया था या कोई अन्य बाधा ? परमात्मा ही जानता है ।" दूसरे किसी ने भी उसकी बातों को नहीं काटा लेकिन मैं चुप रहकर भी सारी स्थिति समझ रहा था । अब जबकि सारा कार्यक्रम सफलता पूर्वक समापन की ओर था । अब केवल इतनी सी बात ही शेष थी कि कहीं भी महादेव जी के मन्दिर में शिवलिंग की पूजा करके मैं भी प्रसाद ग्रहण करू । पास ही एक बड़ा शिव मन्दिर था । मेरा विचार था कि पंचामृत से शिवलिंग को अच्छी तरह स्नान कराके फिर जलहरी से प्राप्त पंचामृत को ग्रहण करूगा। जब बबुआ ने पुजारी को अपना यह कार्यक्रम बताया तब पुजारी ने साफ इन्कार कर दिया था क्योंकि अब तो चार बज रहे थे और रोजाना दो बजे तक ही शिवलिंग को स्नान कराये जा सकते थे । दो बजे बाद तो भगवान का फूलों से अभिषेक हो जाता है । इस समय तो आप केवल आप दर्शन मात्र ही कर सकते हैं। कोई जल या पंचामृत नहीं चढ़ा सकते हैं । वहां जब बिलकुल मना हो गई तो हमने सोचा, कोई बात नहीं । किसी दूसरे मन्दिर में जाकर अपना कार्यक्रम करेंगे । लेकिन हमें बड़ी निराशा हाथ लगी। जब दसियों मन्दिरों में हमें वही कोरा जबाब मिला और लगा कि जैसा मैं चाहता हूँ वैसा होना शायद आज तो सम्भव नहीं है, कल प्रातः भले ही हो । मेरे सामने यह बात एक चुनौती के रूप में मुझे लगी, हो सकता है साधना के इस अन्तिम सोपान पर मेरी परीक्षा ही ली जा रही है और जैसे ही यह विचार मेरे मन में भाया; भूख तथा निर्जला की वजह से प्यास से व्याकुल होते हुए भी मैंने एक संकल्प फिर से ले लिया । यदि प्रभु को ऐसी ही इच्छा हो तो मुझे यह भी स्वीकार है। लेकिन प्रथम प्रसाद तो जलहरी से ही प्राप्त करूँगा तब ही जल ग्रहण करूंगा। तथा तब ही मौन तोडूंगा। भले ही कल तक यह सब कुछ और क्यों न झेलना पड़े।
तभी एक बड़ा सुन्दर सा सन्यासी गली में से निकल कर बबुआ से बातें करने लगा। वबुआ ने सारी स्थिति उसे समझाई तब उसने एक रास्ता सुझाया कि ऐसा करो कि तुम्हें श्रद्धा से मतलब है । प्रसाद की एक बूद मिले या पाव भर उससे क्या अन्तर पड़ता है। एक चम्मच के बराबर शिवलिंग पर चढ़ा दो और चम्मच के बराबर ही शिवलिंग की जड़ में चढ़ा दो और जो कुछ उसके वाद जलहरी में टपक जाये उसे प्रसाद ग्रहण करके आप अपना कार्य सिद्ध करो। इसमें तुम्हें अड़ने की क्या आवश्यता है ? फिर दुबारा से पुजारी से बातें करों। इसके बाद जब हमने
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