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साधन से सिद्धियों की प्राप्ति
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होने की वजह से आर्थिक तंगी बनी ही रहती है इसके साथ ही घर में लड़की भी विवाह योग्य हो रही थी। तीसरी बात और एक जान लें कि उसे सट्टे के नम्बर लगाने का शौक भी था। इतनी जानकारी मैं आपको इसलिये दे रहा हूँ इन सब बातों का प्रभाव मेरी मानसिकता पर उस समय जब मैंने अपने विचारों को टोला था तो मैंने पाया था, तो फौरन मेरे मन में एक विचार यह कौंधा ! क्यों न किसी सट्टे का नम्बर पूछ लिया जावे और इसको बता दिया जावे ! जिससे इसको पैसे रूप में सहायता हो जावे तथा इसके द्वारा की गई सेवा का फल भी उसे मिल जावे । उसके द्वारा किये गये कृत्य से भी मैं उऋण हो जाऊँगा। मेरे स्वयं के लिये तो जो कुछ भी घटेगा वहीं मेरे जीवन को धन्य करने के लिये काफी होगा; ऐसी विचारणा मेरी बनी। बैठे-बैठे ही मैंने अपने आप की अविचार की सी स्थिति बनाने की कोशिश की । तभी बिजली की गति से दो शब्द मेरे मस्तिष्क में चमत्कारिक रूप से चमके "पन्द्रह मुण्डा" मैं तो कुछ समझ ही नहीं पाया- ये भी जबाब हुआ? क्योंकि मैं जितना जानता था, उसके हिसाब से मुण्डा एक से नौ तक होते हैं । जबकि यहाँ शब्द आया था “पन्द्रह मुण्डा" ! मेरा चकराना कुछ जरूरी ही था । इसलिये मैंने फिर दोबारा अपने चेतन से अचेतन को और एक और प्रश्न फेंका। इस तरह काम नहीं चलेगा । अगर बताना है तो साफ करो । यह कहाँ आयेगा और कैसे आयेगा। किस दिन आयेगा और असली बात यह कि या तो यह पन्द्रह रहे या फिर केवल मुण्डा। फिर उसी विद्य त गति से साफ हुआ । पन्द्रह तारीख को भरतपुर पहुंचोगे । उस दिन शुक्रवार होगा, उसी दिन हंडिया खुलेगी । पन्द्रह या "पन्द्रह मुण्डे" की बात फिर भी अधूरी रह गई। मुझे विस्मृत करने की एक बात यह और हो गयी थी। क्योंकि आज मेरे कार्यक्रम का आखिरी दिन है । तारीख आज हुई है केवल ग्यारह । फिर हम पन्द्रह तारीख तक यहाँ क्या करेंगे । ज्यादा से ज्यादा १२ को भरतपुर पहुंच जावेंगे। जब कुछ भी समझ नहीं आया तब मैं शान्त होकर आराम से लेट गया। दोपहर बारह बजे होंगे। शायद नींद नहीं आयी थी भूख या अन्य किसी अभाव से उठ बैठा । मेरे उठते ही बबुआ जिसको कि कुछ भी बोलने की या लिखकर देने की कठोर निषेधाज्ञा थी, लेकिन फिर भी उसने एक कागज पर लिखकर दिया- बद्रीनाथ जी के दर्शन करने की इच्छा है । पहले से बस में बुकिंग करानी पड़ती है। अगर आपकी इच्छा हो तो कल की टिकिट ले आऊँ। वैसे भी आपने अपना कार्यक्रम तीन दिन का ही करने
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