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Achar
योग और साधना
सिक जाप मैं बनाये रखू गा । दूसरी सीसरी बैठक में तो मेरी जांघ, कमर, गर्दन सब दुखने लगी साथ ही सिर भी कुछ भारी महसूस हुआ। बीच-बीच मे जब लघुशाका वगैरहा की जरूरत महसूस हुई तो कमरे के पिछले दरवाजे से बाहर निकल कर अन्दर वाले वरमादे की बगल में ही स्नानघर एवं फ्लस का शौचालय बना था, उठकर जाता रहा । जैसे-जैसे शाम के चार बजे, गर्मियों के दिन थे इसलिए गंगा स्नान के लिए उठकर चलने को मुझे कमरे से बाहर निकलने का उपक्रम करते देखकर बबुआ भी मेरे साथ पीछे-पीछे चल दिया और गंगा के किनारे पर बनी हुई सीमेंट की बैंचों पर जाकर बैठ गये, करीब एक घन्टे तक मैं गंगा की बहती हुई धारा को देखता रहा जिसको केवल देखने मात्र से ही मन में बड़ा आनन्द आ रहा था बाद में वहां से उठकर घाट पर आकर स्नान किया, स्नान करने के पश्चात् अपने कमरे में आकर मैं अपने उसी आसन से बंट गया। कमरे से बाहर जाते समय ही मैंने अपनी जीभ को उल्टी करके कंठ की ओर तालुये से खेचुरी मुद्रा के रूप में चिपका लिया था, जिससे कोई भी शब्द बाजार में किसी से टकराकर भी भूल से नहीं निकल जाये, कमरे में आकर दूसरी बार छाछ पी। जो कि बबुआ ने बनाकर रखी हुई थी । क्योंकि पेट में भूख अपना करतब अपने सम्पूर्ण वेग से दिखा रही थी, उसके बाद मैंने अपना वही सिद्धासन लगाया और राम के नाम के साथ प्राणायाम जैसा कुछ करने लगा थकने के बाद मैं वही पर लेट गया।
लेट जाने के बाद भी मैं अपने स्वास के साथ राम का नाम मन में चलाता रहा । इस प्रकार से करते करते चाहे योड़ी देर के लिए ही सही मुझे नीद आ जाती थी। इस प्रकार की नींद में यही एक अनोखापन था कि राम का नाम लेते-लेते नींद आ जाती थी और जब मेरी नींद टूटती या मेरी चैतन्यता लौटती तो तब भी मैं अपनी जबान पर राम का नाम ही पाता था। कई बार तो मुझे ऐसा महसूस हुआ था कि बबुआ शायद मुझे हर समय अपने ध्यान में ही समझ रहा है जबकि मैं वीच बीच में निद्रा भी चला जाता था यह बात दूसरी है कि आध्यात्म में इस प्रकार की निद्रा को योग निद्रा कहते हैं ।
रात्रि के करीव ७-८ बजे तीसरी बार छाछ और ली। इस प्रकार दस बजे तक कार्यक्रम चला । दस बजे सोने से पहले मैंने कुछ बदलाव लाने के ख्याल से दीपक जो मैंने कमरे में जला रखा था, उसे अपनी आंखों के बराबर ऊंचाई पर
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