________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
८४
योग और साधना
के पत्थर की तरह यह बता क्योंकि इन स्थितियों में तो
दास जी, साधक के भ्रम को दूर करने के लिए मील रहे हैं कि सुन्न मरें, अजपा मरे, अनहद हू मर जाय । वह अपनी ही माया में फँसा रहता है, और जब तक वह माया के जाल में फँसा है तब तक उसे इस माया के कारण से बार-बार जन्म लेना और मरना पड़ता है । इसके विपरीत यदि वह इन तमाम सिद्धियों से अपने आपको बचा ले तो फिर वह माया के प्रेम पाश से बचकर इस दुनिया के आवागमन से छुटकारा पा लेता है। इस प्रकार का साधक जब जन्म ही नहीं लेता तो फिर वह मरता भी नहीं है । इतनी बात को समझने के पश्चात ही कबीरदास जी को वह बात समझ में आती है। जिसमें उन्होंने कहा है कि "इक राम सनेही ना मरे कह कबीर समझाय ।"
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ज्ञान और कर्म तो आसान है लेकिन भक्ति की भावना को साधना बहुत. कठिन है क्योंकि जरा सी भावना ही तो हमें उसके नजदीक पहुँचाती है और वहीं जरा सी विपरीत भावना हमें उसकी ओर खुलने वाले द्वारों को हमारे लिए बन्द करवा देती है इसलिए यदि हमें भक्ति में उतरना है तो बहुत ही होशपूर्वक अपने आपको जागृत रखना होगा । नहीं तो माया के कीटाणु हमारे अन्दर कितने प्रकार से प्रवेश कर जाते हैं । इसका अन्दाजा लगाना भी बड़ा कठिन है । इसलिए हमें अपने आपको इस रास्ते में सदा चैतन्य रखना होगा, हमारे समक्ष कैसी भी परिलिए खड़ी हो जायें, लेकिन हम हमेशा आपको होश संभाले हुए रखें । अभी छोटी सी पुस्तक पढ़ रहा था, उसमें
स्थिति जागृति के मार्ग से विचलित करने के ही उससे बिना विचलित होते हुये अपने पिछनी साल जागृति या होश के ऊपर एक एक बहुत ही सुन्दर उदाहरण मैंने पढ़ा था ।
पुलिस के वायरलैस विभाग में वायरलैस आपरेटरों का इन्टरव्यू होना था । वहाँ पर केवल एक ही रिक्त स्थान था, लेकिन आज की इस बेरोजगारी की मार की वजह से पचास के करीब उम्मीदवार वहाँ उस एक मात्र जगह के लिये एकत्रित हुये थे । गर्मियों के दिन थे, इन्टरव्यू दस बजे शुरू होना था, इसलिये लड़के नौ बजे से ही वहाँ इकट्ठे हो गये थे । जैसा कि प्रत्येक पुलिस रेडियो स्टेशन पर होता है, ठीक वैसे ही वहाँ भी दुनिया भर की मशीनें इधर-उधर के कमरों में लगी हुई थीं,
For Private And Personal Use Only