________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
योग और साधना
देना चाहता हूँ कि मेरा यह आश्रम आपके राज्य की सीमा के अन्दर है, यहाँ रहकर मैं आनन्दपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहा हूँ। इसके अलावा मैं आपके न्यायप्रिय शासन से भी बहुत प्रभावित हैं। तमाम प्रजा भी अमन चैन से है । इसलिये राजकुमार जी जल्दी से जल्दी और अच्छी से अच्छी तलवार चलाना वे यहाँ सीखे ऐसी मेरी हादिक इच्छा है । ऐसा करने के बाद मैं अपने आपको राज्य के ऋण से मुक्त हुआ ही मानूगां । अन्त में 'मैं' बस इतना को कहना चाहता हूँ कि राजकुमार होनहार है, इसलिए सीख ही जावेगा । इससे ज्यादा तो मैं स्वयं भी नहीं जानता कि वह कब तक सीख पायेगा।"
- राजा इसके बाद एक भी शब्द नहीं बोल सका, गुरुजी के उसने चरण छूये और चुपचाप अपने राजमहल लौट आया । लेकिन राजा के मुख मण्डल पर न जाने क्यों सन्तुष्टि को एक अलौकिक आभा फैल गयी थी।
उधर जब कुछ दिन और व्यतीत हो गये तो एक दिन गुरूजी ने बिना कुछ भी कहे सुने लकड़ी की तलवार से राजकुमार पर प्रहार करने शुरू कर दिये गजकुमार को तो कुछ पता ही नहीं था, इस प्रकार से भी कहीं कोई सिखाता है । और गुरूजी थे कि बस मारे ही जा रहे थे। जगह-जगह से शरीर लहू-लुहान हो गया। करीब पन्द्रह मिनट बाद गुरूजी ने प्रहार करना बन्द कर दिया । लेकिन बोले अब भी कुछ नहीं । राजकुमार तो बिल्कुल बैचेन ही हो गया था कि यह क्या बला है ? एक हफ्ते में जाकर कहीं उसका शरीर स्वस्थ हुआ।
.' उस दिन के प्रहारों के बाद अन्य कोई बात आज तक राजकुमार के सामने नहीं आयी । जैसा पहले चल रहा था, सामान्यतया ठीक वैसी ही दिनचर्या अब भी थी । एक बार तो राजकुमार ने यह भी सोचा कि उस दिन गुरूजी को तलवार चलाने का कहीं दौरा तो नहीं पड़ गया था। उस दौरे की अवस्था में इन्होंने मुझको मारा'हा और अंब इन्हें उसकी याद भी न हो। लेकिन चमत्कार उसी रात को फिर हुआ, जब राजकुमार सोने ही वाला था । उसे कुछ आहट सी हुई उसकी जब आँख' खुली तो देखता क्या है, कि बिजली की सी फुर्ती से गुरूजी हाथ में वही लकड़ी की तलवार लिये उस पर प्रहार करने ही वाले हैं। इससे पहले किं गुरूजी उस
For Private And Personal Use Only