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गुरू वह है जो होश जगाए, जागृति लाए, मार्ग दिखाए
जबकि इस दुनिया में सबसे सीधा और क्रमबद्ध आध्यात्म की साधना के लिये यदि कोई मार्ग है तो वह उनका अष्टांगी मार्ग ही है। हम सीधे राजमार्ग या राजयोग को अपना कर भी बिना होश जगाऐ अपनी यात्रा की मंजिल पर नहीं पहुँच पाते हैं जबकि बाल्मीकि उल्टे मार्ग को अपना कर भी तत्व ज्ञानी हो जाते हैं । इसलिये हमेशा ध्यान रखें कि इस साधना को हम कौन से मार्ग द्वारा करेंगे यह बात बहुत ही गौण है, इसलिये इस भ्रान्ति को तो अपने मन में स्थान बनाने ही मत दें । कुछ लोग कहते हैं कि जैन धर्म बहुत ही पहुँचा हुआ धर्म है या बौद्ध धर्म में बड़ी विलक्षणता है अथवा आर्य समाजी ही तात्विकी होते हैं; किसी अन्य दूसरे के लिये मुसलमानों के फकीर सिद्ध होते हैं अथवा वे किसी विशेष मत के मानने वाले होते हैं और किसी अन्य के नहीं, ये तमाम बातें मेरे देखते फिजूल की हैं, क्योंकि यदि हममें हौसला है तो हम अपने हाथ का लाठी से डरे हुये इंसान की बंदूक को भी गिरा सकते हैं। क्योंकि हथियार थोड़े हा लड़ता है लड़ती तो हमारी हौसले की भावना है । इसलिये तो किसी ने कहा है कि "जात-पात पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।" इस दुनिया में जितने भी अध्यात्म मार्ग के शिक्षक पैदा हुये हैं सभी के सभी महान हैं। उनमें किसी की भी साधना पद्धति में किसी भी प्रकार की कमी नहीं है। क्योंकि जिस किसी ने होश पूर्वक उस परम् सत्ता की साधना के मार्ग में अपना समपर्ण * कर दिया वही इस भवसागर से पार हो गया।
समपर्ण-यहाँ इस समपर्ण शब्द का अर्थ ठीक से समझ लें समपर्ण का अर्थ है "समुत्व भाव सहित अर्पण मतलब जिसमें कर्ता का भी भाव नहीं | बचा, जबकि अर्पण में कर्ता मौजूद रहता है।
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