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योग और साधना
चार ही होते हैं। इसलिये प्रेम मे तो बहुत ही हौसले की जरूरत होती है और हिम्मत दिमाग में नहीं बल्कि वह तो दिल के स्वामी मन में होती है। इसलिये मन के भीतर होश की लौ जगाये बिना तो हम प्रेम में उतर ही नहीं सकते हैं । तो ध्यान रखना जब बेहोश व्यक्ति प्रेम करने के काबिल पात्र ही नहीं होता तब वह भक्त किस प्रकार से बन सकेगा और बिना भक्ति के हमारी प्रार्थना के द्वार हमें किस प्रकार से खुल सकेंगे।
अगर वास्तव में हमें अपनी प्रार्थना में उतरना है तो हमें अपनी जागृति जगानी ही होगी। इस सीढ़ी को पार किये बिना हमारा आध्यात्म के क्षेत्र में प्रवेश असंभव ही है । आपने ऐसे बीमारों के बारे में सुना होगा जो दिन को ठीक स्वस्थ आदमी की तरह से होते हैं, लेकिन रात्रि में वे अपनी नींद में उठकर घर से बाहर निकल कर इधर उधर चल भी आते हैं। सुबह उठ कर उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता, ऐसे व्यक्ति को कितना भी याद दिलाओ और कहो कि रात ग्यारह बजे तुम मेरे पास आये थे और मुझसे यह बात कही थी लेकिन इनको कुछ भी याद नहीं रहता यह एक प्रकार की मस्तिष्क की बेहोशी है। रात को अपने घर में सोते हुये बालक को जगाकर माँ दूध से भरा हुआ गिलास उसे पिला देती है सुबह उठकर वही बालक माँ से कहता है कि रात को हमें दूध क्यों नहीं पिलाया था ? ये भी बेहोशी ही है । कुछ बुद्धि के स्तर की और कुछ मानसिक स्तर की । हम क्लास में होते हैं और हमारा मन कहीं और फुटबाल खेल रहा होता है। रोजाना ही हम इस प्रकार के अनन्य अनुभवों से गुजरते हैं। जिनमें हमारी आँखों के सामने घटना होकर गुजर भी जाती है लेकिन हमारी आँखे खुली रहते हुये भी हम उस घटना को नहीं देख पाते हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि खास बात तो यह है कि हम कितनी तन्मयता के साथ अपनी साधना में उतरते हैं। इसके विपरीत कुछ साधक अपनी तन्मयता पर इतना ध्यान नहीं देते जितना कि उसके मार्ग पर जिसके कारण उनको हमेशा असफलता ही हाथ लगती है। इसलिये ध्यान रखें बिना अपने मन को एकाग्र किये हम भले ही महर्षि पतंजलि के मार्ग को ही क्यों न अपना लें हम अपना समय ही बर्बाद करेगे, हमारे हाथ कुछ भी नहीं लगने वाला है।
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