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साधन से सिद्धियों की प्राप्ति
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"अच्छा यह बात है तो, सुन मैं तुझे गुरू मन्त्र देता हूँ उसे तुझे अपने मन में आराम से बैठकर भजना होगा। लेकिन मेरे लिये इस गाय और बछड़े को तुझे गुरूदक्षिणा के रूप में देना होगा । सोच ले नहीं तो मैं चला" । उस बाबाजी ने उस पर इस तरह से फंसाने के लिये एक पांसा फेंका। ग्वाला बोला " आप इस एक गाय की क्या चिन्ता करते हैं इन सभी को हांक कर ले जाईये, लेकिन मुझे गुरू मन्त्र तो दीजिये" । "अच्छा ला, अपना कान इधर ला" । इस प्रकार से उस बाबा ने उस ग्वाले के कान में गुरू मन्त्र के रूप में " गोपाल" कहा और शीघ्र ही उस माय और बछड़े को लेकर वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गया ।
वह ग्वाला उस गुरू मन्त्र को लेकर ऐसा समझ रहा था कि अब तो वह निहाल ही हो गया है इसी प्रफुल्लता के दौर में थोड़ी देर बाद ही वह अपने उस गुरू मन्त्र को भूल गया । उसने इधर-उधर नजर दौड़ाई लेकिन गुरूजी का तो कहीं पता ही नहीं था । उसने अपनी खोपड़ी पर जोर डाला, तब बहुत देर याद करने के पश्चात् उसे वह गुरू मन्त्र याद हो आया लेकिन गोपाल के रूप में नहीं वह गोपाल को तो भूल ही गया था अब तो उसे भोपाल ही याद रहा । इस डर से कि कहीं अब इसे फिर से नहीं भूल जाऊँ इसलिये वह उसी समय बिना कुछ सोचे विचारे तत्क्षण ही एक कुऐ की नेहची (जिसमें कुएं से पानी का चरस खीचतें समय बैल नीचे की ओर जाते हैं) में कुऐ की तरफ मुँह करके दीवार का सहारा लेकर आँखे बन्द करके बैठ गया, और भोपाल, भोपाल, भोपाल ही भजने लगा । वह इस भोपाल शब्द के साथ इतना तन्मय हो गया था कि उसे अपने खाने पीने, सोने, उठने बैठने तथा कहीं आने का भी होश नहीं रहा । इस प्रकार जब उसे भोपाल भजते-भजते तीन दिन व्यतीत हो गये तब कहानी अपने कथानक में कहती है कि , उसकी तपस्या से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने अपनी पत्नी लक्ष्मी जी से कहा कि "चलो लक्ष्मी जी तुम्हें अपना भगत दिखायें" वे दोनों वहाँ उस कुऐ के पास आये भगवान विष्णु तो कुऐ पर बाहर की ओर पैर लटका कर बैठ गये और उन्होंने लक्ष्मी जी से कहा कि " जाओ नेहची में उधर की ओर बैठा है वहाँ देख आओ” । लक्ष्मी जी उधर गयी तो क्या देखती है कि एक गवाँर सा आदमी आलथी-पालथी मारे हुऐ तथा आंखें बन्द किये हुऐ दीवार का सिराहना लगाऐ हुऐ बैठा है । उन्होंने ऊंची आवाज में पुकार कर कहा कि "कौन है रे, क्या कर रहा है" । आँखे बन्द किये ही ग्वाले ने तुरन्त जबाब दिया " भजन कर रहो हूँ क्यों का बात है"
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