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साधन से सिद्धियों की प्राप्ति
जिसके मुँह में आपने बतासा रख दिया है, और हम उससे पूछ रहे हैं कि बताओं इसका स्वाद कैसा है । अब वह बेचारा गूगा उस बतासे की मिठास का वर्णन किस प्रकार करे । इसके अलावा उन अनुभवों को गुप्त या रहस्य में रखने का एक कारण और भी है । वह यह है कि कुछ बातें ऐसी होती हैं जो प्रत्येक व्यक्ति पर एक जैसी ही घटित नहीं होती है जैसे माना कि दो साधकों को एक ही ढंग से साधना करने से एक ही तरह के अनुभव हुए। लेकिन उन अनुभवों के बाद पहला तो ऐसा हो सकता है जो प्राप्तियाँ उसे मिली हैं उन्हें परमात्मा का प्रसाद समझ कर आत्मसात कर लें, जबकि दूसरा उसको अपनी तपस्या का फल समझकर अपनी सात्विकी वृत्ति के कारण उनको बाँटने में लग जाऐ, माना कि बाँटना बुरा नहीं है लेकिन वाँटने की क्रिया होने में वहाँ कर्ता मौजूद रहता है जिसके कारण से उस साधक में उसके मन में अहम् की वृद्धि हो जाती है जो उसकी आगे की साधना में व्यवधान खड़े कर देता है ।
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फिर भी मैं स्वयं इन सब बातों को जानते हुऐ भी इस पुस्तक में उन्हीं तों को यहाँ तथा आगे भी लिखने को उद्यत हो रहा हूँ जो मुझे अपने भले को सोचते हुए नहीं लिखनी चाहिये। क्योंकि इस साधना की गूढ़ तथा रहस्य की बातों को इस जगत में प्रगट कर देने के कारण अपने को मिली हुई शक्तियों के समाप्त होने की सम्भावना प्रायः हो जाती हैं, लेकिन चूंकि मैं गृहस्थ धर्म में रहकर इस समाज से 'जुड़ा हुआ हूँ, इसलिये न जाने कितने लोगों से मेरे मधुर या कटु सम्बन्ध होगें हो, उन सम्बन्धों का सामना करते समय अपने पास की उपलब्ध सामग्री का मैं जो भी उपयोग करूंगा या मुझे परिस्थिरिवश करना पड़ सकता है । वह हर हालत में कालान्तर में दुरुपयोग ही सिद्ध होगा जिसके कारण मेरे संस्कारों की कड़िया घटने की बजाय और ज्यादा ही बढ़ेगी तथा इन नवगठित संस्कारों के बशीभूत होकर न जाने और कितने जन्मों तक मेरी साधना की अन्तिम घड़ियाँ आगे खिसक जायेंगी। इसी बात का ख्याल कटके ही खाते में मैंने कंगाल हो जाने की ठानी हैं, या इनके चंगुल से मुक्त यह मैंने खूब सोच विचार करके एक सुगम सा रास्ता निकाला है। मेरी यह धारणा गलत हो तब भी मैं इतना ही सोचूंगा कि पिछले अन्य दूसरे दूसरे सिंचित संस्कारों के कारण ही मुझे यह भोग भोगना पड़ रहा है जिसके
सिद्धियों के
रह जाने का
यदि भूल बश जन्मों के या