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योग और साधना
बचा ही नहीं था।
___ एक दिन राजकुवर कमरे के अन्दर बैठा हुआ गेहूँ से कंकड़ बीन रहा था, अचानक उसके दिमाग में एक विचार आया कि रोजाना गुरूजी मेरे ऊपर जाने में का मन जाने में प्रहार करते रहते हैं, क्यों न किसी दिन चुपचाप में इनके ऊपर प्रहार करके देखू ? राजकुवर अभी अपने मन में इतना सोच ही रहा था कि बाहर से गुरुजी की आवाज आयी "बेटा मेरे ऊपर तलवार से बार तो कर लेना जब तेरा जी चाहे लेकिन तलवार जरा धीरे से बलाना, क्योंकि मैं एक बुढा आदमी हूँ"। और इतना कहकर गुरुजी चुप हो गये। बाहर से गुरुजी द्वारा इस प्रकार जबाब दिये जाने से राजकुंवर तो अवाक् ही रह गया, क्योंकि वह सोचने लगा कि मैंने इनसे तो अभी कुछ कहा भी नहीं है । मैं तो अभी अपने मन में सोच ही रहा था
और इन्होंने तो इसका जवाब भी मुझे दे दिया। ये कैसा चमत्कार ! उसी क्षण वह गुरूजी के प्रति पहली बार श्रद्धा से भर उठा, बाहर आकर साष्टांग दण्डवत् की और वह उनसे पूछने लगा कि "आपने मेरे मन की बात कैसे जान ली, कृपया मुझे भी कुछ समझाएँ ?' गुरूजी बोले "तलवार चलाना तो तुम्हारा सेनापति भी अच्छी तरह से जानता है लेकिन उसने तुम्हें मेरे पास भेजा ही इसलिए है कि जितनी भी तरह के प्रहार करने करने के तरीके हैं यहाँ तुम उन्हें भी सीख लो,
और उन्हें केवल मैं ही सिखा सकता है, क्योंकि मेरा उद्देश्य केवल तलवार चलाना सिखाना नहीं है। बल्कि मैं तो तलवार के द्वारा व्यक्ति में होश जगाता है। .: ध्यान रखना ! इस होश को केवल मैं ही सिखा सकता हूँ क्योंकि मैं स्वयं भी होश में ही रहता हूँ। तुम देखते हो मैं अपनी सुरक्षा के लिये तुम्हारे सेनापति या तुम्हारे पिता की तरह से अपने पास किसी अंगरक्षक को नहीं रखता हूँ। क्या इस दुनियां में मेरा कोई शत्रु नहीं है। इस राज्य का नहीं तो दूसरे राज्य का तो होगा जो मेरा यश जानता होगा। अब चूंकि मेरा होश जागृत है इसलिए ही दूसरों के मन में मेरे प्रति द्वष से भरे उठते हुये विचारों को मैं उसी समय जान जाता हूँ और अपनी सुरक्षा के लिये दूसरों के मेरे ऊपर आक्रमण करने से पहले ही मैं अपनी तरफ से तैयार हो जाता हूँ। क्योंकि कोई भी कर्म हमारे द्वारा स्थूल रूप से कार्य रूप में क्रियान्वित होने से पूर्व हमारे मानसिक स्तर पर सम्पन्न होता है जैसे तुम हाथों से तो कंकड़ बीन रहे थे जबकि मन के द्वारा मेरे ऊपर आक्रमण की सोच रहे थे । बस तुम्हारे मन से उठते हुए विचारों की तरंगों को मेरे जागृत मन ने
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