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योग और साधना
भी इसी बात को समझाने के लिये दो एक उदाहरण बड़े सटीक और सुन्दर अपनी भाषण माला में दिये थे, जो अब उनकी पुस्तकों में हमें पढ़ने को मिले हैं । उन्हें ही यहाँ मैं अन्य साधकों के हितार्थ लिख रहा हूँ।
एक फकीर अपने बहुत सारे शिष्यों में से चुनकर पच्चीस शिष्यों को लेकर जंगल में चला गया । बस्ती से दूर घनघोर जंगल में एक छोटे से मकान में उन सभी शिष्यों को ठहरा दिया। उनकी खाने-पीने की व्यवस्था उसने स्वयं ने की। उन सभी को एक साथ इकट्ठा करके उसने उन्हें बताया कि तुम सभी को इन कमरों में ही एक महीने तक रहना है। यहाँ रहने की एक शर्त भी है, वह यह है कि कोई भी शिष्य इस एक महीने के समय में एक भी शब्द नहीं बोलेगा। न तो जागते हुये और न ही सोते हुये, न प्रेम में, न क्रोध में, और तो और कोई अपने किसी इष्ट का भी नाम उच्चारण नहीं करेगा। मतलब कुल मिलाकर यह है कि मैं जिसके मुंह से एक भी शब्द सुन लूगा उसे यहाँ से उसी समय निकाल दूंगा । इसलिये आप एक भी शब्द नहीं बोले चाहे आपके सामने साक्षात् मौत ही क्यों न आ जाये । आप सभी यहाँ साथ-साथ रहेंगे लेकिन आपको रहना अपने आप में प्रत्येक को अकेला ही हैं।
एक सप्ताह के बीतते-बीतते तो, उस फकीर ने आधे से ज्यादा शिष्यों को उनके मौन भंग हो जाने के कारण वहाँ से चलता कर दिया था, और महीने का अन्त आते-आते तो केवल वहीं दो ही बचे थे, और तीसरा था वह स्वयं । अपने उन दोनों शिष्यों को लेकर वह फकीर जंगल से वापिस बस्ती में आ गया। ये दोनों सन्यासी बड़े भारी हैरान, परेशान थे, कि गुरूजी हमें वहां क्यों ले गये थे । तयाँ क्यों हमारी महीने भर तक जबान बन्द रखी थी। अब भी इन्होंने हमें कुछ भी नहीं बताया है । इतने के बावजूद भी ये इन्तजार ही करते रहे कि शायद गुरुजा' अपने आप ही कुछ बतायेंगे।
कुछ दिन बीत जाने के पश्चात् इनको बड़ा अटपटा सा बस्ती के लोगों को देखकर लगने लगा। क्योंकि तमाम बस्ती के लोग गलती पर गलती किये जा रहे थे, उन्हें होश ही नहीं था । यदि कुछ थोड़ा बहुत होश आता भी था, तो वह भी
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