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चेतन मन से अचेतन मन पर पहुंचने का फल ही सिद्धियाँ
अनुभव करें। दूसरे के अनुभव आपके काम न आ सकेंगे। क्योंकि यह कार्यक्रम आपके और केवल आपके अर्तमन में घटित होता है आपके साथ वाला कोई कितना भी नजदीकी क्यों न हो, इस परिवर्तन की भनक भी न पा सकेगा। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में अकेला है तथा पूर्ण है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना अलग मन है । इसलिए ही मन की अनुभूति भी तो अलग ही प्राप्त होती है ।
आपके कहे वाक्य अपने कालान्तर में सत्य सिद्ध होने लगे तब आपको केवल इतना ही समझना चाहिए कि हमारा मार्ग ठीक चल रहा है या अपनी कोशिशों के द्वारा मैं शायद सही रास्ते पर आ गया हूँ। ध्यान रहे। इसको प्रसाद रूप में स्वोकार करें, हक रूप में नहीं। क्योंकि प्रार्थना से प्रसाद ही मिलता है हक नहीं।
__ जब आप यह महसूस करने लगे कि अनायास ही कुछ विचार जाने कहाँ से आपके मस्तिष्क में होशपूर्वक आ गये हों, अथवा किसी विचार के बदले में उसका निर्णय आपके समक्ष मन में एक कौंध की तरह से अनायास ही आ गया हो तब ही समझ लेना चाहिए कि यही मार्ग हमारे चेतन मन से अवेतन मन पर ले जाने का है । जिस पर हम अब चल रहे हैं ।
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