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गुरू वह है जो होश जगाए, जागृति लाए, मार्ग दिखाए
अलावा और कौन समझा सकता है। बिनोवा जी के गीता पर उनके द्वारा जेल में दिए गए प्रवचन पढ़ रहा था, इसी बात को उन्होंने एक तिपाही का उदाहरण देकर समझाया है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार तिपाही की एक भी टाँग टूट जाने के पश्चात् तिपाही का सही सलामत खड़े रहना नामुमकिन है, उसी प्रकार साधक को भक्ति, ज्ञान और कर्म को त्रिपुटी के बारे में व्यापक जानकारी किये बिना मंजिल पर पहुँचना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। हाँ ऐसा अवश्य हो सकता है कि आप अपनी साधना की नींव शुरू में इन तीनों में से किसी एक पर रखें। लेकिन अपनी साधना में पूर्णता को प्राप्त होने के पहले, आप में इन तीनों चीजों का समावेश हो ही जावेगा। मीरा ने अपनी साधना भक्ति से शुरू की थी लेकिन साधना की अन्तिम पायदानों में कर्म करते करते ज्ञानी हो गई थी, कबीर भक्ति से शुरू करके ज्ञान को प्राप्त हो गए थे, विवेकानन्द को रामकृष्ण ने ज्ञान से शुरू कराया, (अष्टावक्र की गीता के द्वारा) लेकिन बाद में वे देवी मां के भक्त हो गये थे । कहने का तात्पर्य यह है कि हमें पूर्णता तो तभी प्राप्त होगी जब हम इस साधना की तमाम व्यवस्था को अपने चित्त के अन्दर श्रद्धापूर्वक, समझपूर्वक तथा यत्नपूर्वक भी आत्मसात करलेंगे।
भक्ति के द्वारा ही हमें, (अभी जो हमारे लिए अज्ञात हैं) अपने आपको समपर्ण करने की भावना प्राप्त होती है और ज्ञान के द्वारा उस अज्ञात की तरफ जाने वाले अनन्य रास्तों में से अपने पूर्व जन्मों के सिंचित संस्कारों के तहत कौनसा रास्ता हमारे लिए ठीक है; उसकी पहचान हमें होती है। जब हमारे अन्दर भक्ति और ज्ञान का प्रादुर्भाव हो जाता है, केवल तब ही हमारे कर्म उस अज्ञात की साधना में सफल होते हैं । अन्यथा कहीं न कहीं किसी न किसी प्रकार की अड़चनें हमारे समक्ष आती रहती हैं । भक्ति, ज्ञान और कर्म की त्रिपुटी को ठीक से समझे बिना ही कुछ लोग यह कहते पाये जाते हैं, कि भक्ति का भाव तो परमात्मा हममें जब उसकी इच्छा होगी वह स्वयं हममें पंदा कर देगा; तथा जरूरत के मुताबिक ज्ञान का संचार भी हममें वह ही करेगा । इसलिये हमें तो उसकी निगाह का ही इन्तजार है । जब उसकी निगाह हमारी तरफ हो जावेगी, तब ही हम कर्म करेंगे । बड़े ताज्जुब की बात है ! जब भक्ति और ज्ञान वह आपमें भर देगा, फिर तो कर्म भी वही कर लेगा। आप तो फिर आराम ही कीजिये । इस तरह से तो यात्रा कभी भी अपनी मंजिल की तरफ बढ़ नहीं पायेगी। क्योंकि, ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें अपने साधन रूपी
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