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त्रिगुणातीत अवस्था का बोध
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वाले हैं, या जबकि अपनी कड़ी मेहनत से की हुई कमाई का स्तेमाल करने के हम हुये हैं, तब ही भगवान हमारे हाथ काटे ले रहे हैं, और कह रहे हैं कि इसका उपयोग मत कर बल्कि खाते की समस्त रकम को मेरे खाते में स्थानान्तरित कर दे, अपने हाथों में बिल्कुल मत रख ।
अब कैसे हिम्मत हो, बड़ी मुश्किल से पास आयी रकम को, दूसरे को सौंपने की, क्योंकि अगर रकम चोरी की होती तो तब भी कोई बात नहीं थी, किसी दूसरे की उधार होती तब भी चल सकता था, लेकिन यह तो बीसों नाखूनों की कमाई है, इसे कैसे किसी को सौंप दें ।
इसी सन्दर्भ में मुझे एक महाजन की कथा याद आती है । जिसे मैं यहाँ लिख रहा हूँ ।
एक महाजन के एक ही लड़का था । वह लड़का अब बीस वर्ष का हो चुका था । इसलिए महाजन ने सोचा कि लड़के को कारोबार का काम सम्हालना है, इसलिए कुछ चीजें इसको सिखानी हैं। इस बात को सोचकर महाजन ने बेटे को बुलाया और उससे कहा कि "बेटे बाजार जाओ और कुछ कमाकर लाओ, और जब तक कुछ पैसा कमा न लो तब तक लौटना नहीं ।" इस वात को सुनकर बेटा चला गया और घर पहुँच गया । वह जाकर अपनी माँ से बोला कि, “पिताजी ने कहा है कि जब तक कुछ कमा नहीं लेते तब तक वापिस नहीं लौटना ।" माँ बोली, "बेटा चिन्ता मत कर, मैंने कुछ पैसे जोड़-जोड़कर बचा लिये हैं, ये ले पूरे चालीस रुपये हैं, जाकर पिताजी को दे दो ।" दिन भर वह लड़का घर पर रहा और शाम को अच्छे धुले हुये कपड़े पहनकर, बाल वगैरह संवार कर उन चालीस रुपयों को लेकर दुकान पर पिताजी के सामने पहुँच गया ।
दुकान पर पहुँचते ही महाजन ने बेटे की शक्ल सूरत देखकर ही अन्दाजा लगा था कि कहीं कुछ दाल में काला है। खैर " "उसने लड़के से पूछा, "कहो बेटे कमा लाए ?” लड़का बोला, “हाँ पिताजी लो ये पूरे चालीस रुपये हैं ।" रुपयों को देखकर महाजन बोला, "जाओ, इन रुपयों को उस सामने वाले कूअ में डाल आओ ।" लड़का पहले तो अचकचाया। लेकिन पिताजी की आज्ञा करके उसने उन रुपयों को कूओं में डाल दिया । रात्रि आराम से
को शिरोधार्य गुजर गयी ।
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