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त्रिगुणातीत अवस्था का बोध .
हुई शक्तियों को परमात्मा के चरणों में अर्पित कर देगा। उसका क्या सम्बन्ध है उस. परम सत्ता से ? उसका तो यह व्यक्तिगत मामला है। अब तो वह और भी अधिक तीव्रता के साथ प्रयत्न करेगा कि किसी प्रकार से मेरे मुंह में फिर से दोबारा दाँत उग आयें, माता की कृपा से । तब मैं एक माता का विशाल मन्दिर बनवाऊँगा फिर तो बड़ी मौज रहेगी, खूब शराब मिलेगी, खूब मांस मिलेगा खाने को और म्यूब ही भक्तिनों का सम्पर्क मिलेगा ।
___ अब क्या अंजाम होगा ऐसे भक्त का ? और परिणामस्वरूप इसका क्या स्तर होगा ? जब इसके स्वयं का ही कोई स्तर नहीं है तब इसकी प्रार्थना का भी स्तर क्या होगा? क्योंकि जो व्यक्ति उन शक्तियों का उपयोग स्वयं के हित साधने में कर रहा है वह अपना सम्पर्क उस परम तत्त्व से कैसे जोड़ सकेगा । इसी स्थिति वाले. साधक के लिए किसी विद्वान ने कहा है कि "खाई से तो बच गए लेकिन खड्ड में गिर गए।"
इस भौतिक संसार के मायावी जालों से ही अपना पीछा छुड़ाना बड़ा कठिन होता है। जन्म के जन्म लग जाते हैं, संस्कारों को निपटाते-निपटाते । जबकि इस स्तर के साधक तो माया के जाल को अपने मानसिक सूक्ष्म स्तर में भी प्रवेश करने की अनुमति दे रहे होते हैं । चूहा अपनी स्वाभाविक अवस्था में ही साधारणतया काफी. उछल-कूद करता रहता है । कभी चैन से दो पल शान्त नहीं रह सकता है । हर समय कुतर-कुतर लगा ही रहता है, कहीं ऊपर से वह भाँग और खाले तो क्या हाल होगा उस बेचारे का ? उसकी बेचनी पर तो आपको भी तरस आ जावेगा। लेकिन यह सोचकर कि चलो कोई बात नहीं है थोड़ी देर में यह अपने आप शान्त हो जावेगा । आप भी सन्तुष्ट हो जावेंगे। लेकिन तब उस चूहे पर क्या बीतेगी। जब वह उसी नशे की हालत में अपने मन में यह निश्चय कर बैठे कि, अब से आगे मैं बिल्ली से नहीं डरूंगा बल्कि बिल्ली ही अब से आगे मुझसे डरा करेगी। क्योंकि मैं तो. एक विशिष्ट चूहा हूँ। ऐसे ही साधकों में हमें योग भ्रष्ट साधक दिखाई पढ़ते हैं। उनको कितनी बुरी अवस्था होती है। इसे भुक्त भोगी से ज्यादा कोई नहीं जान सकता है।
कुछ दूसरे स्तर के साधकों की प्रवृत्ति राजसी होती है। जिसके तहत उनमें एक दूसरे प्रकार का शौक, साधना की शक्ति आ जाने के पश्चात शुरू हो जाता है ।
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