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Achar
अध्याय ४
भक्ति ही चैतन्यता का स्रोत
भारतीय आध्यात्मिक सिद्धांत जिसे हम अब तक जान पाये हैं वह यही है, जिसके तहत हम मृत्यु से दूर नहीं भागते अपितु उसे अपने चारों तरफ अपने ज्ञान से फाहर स्वीकार करते हैं। इसी एक मात्र सिद्धांत की सिद्धहस्तता प्राप्त करने के लिए हमें, न जाने कितनी प्रकार की साधनाओं में से अनन्य तरीकों से गुजरना पड़ता है। और हमें इस सिद्धांत की समर्थता का पता वास्तव में केवल तब ही लगता है। अन्यथा हमें भी ये उपरोक्त शब्द केवल शाब्दिक जाल से ज्यादा कुछ भी नहीं लगते हैं । इस सिद्धांत को हमें सिद्ध करके यदि अपने अनुभव में लेना है तो, जैसा कि मैंने पहले लिखा है कि सर्वप्रथम सत्य को अपने अन्दर सत्य के ही भाव से स्वीकार करके हमें इस संसार के मायावी सम्बन्धों की यथार्थता का पता चलाना होगा। अब इसके साथ ही यहाँ मैं जागृति के द्वारा मन की भ्रान्तियों से हमारा कैसे पीछा छूट जाता है इस पर कुछ बहुत थोड़ा सा लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। क्योंकि हम अपने मन को, बे सिर पैर के अथवा भावनात्मक बोझों से दबाए हुए रखते हैं और चाहकर भी हम अपनी प्रार्थना में नहीं उतर पाते हैं चैतन्यता या जागृति को समझने के लिए हमें अपने अन्दर बहुत ही बारीकी से अध्ययन करना होगा । क्योंकि यह संसार हर क्षण अपना स्वरूप बदल लेता है । इसके परिवर्तनशील स्वभाव के कारण ही यहाँ हम देखते हैं कि, प्रत्येक विचार, स्थिति, परिस्थिति, सम्बन्ध और यहाँ तक कि सिद्धान्तों की परिभाषायें भी देश काल और परिस्थितियों के सिद्धान्तानुसार* बदलते रहते हैं। इसलिए हमें अपने अन्दर इतनी उच्च स्तर की जागृति या होश की लौ निरन्तर जलाए रखनी पड़ेगी, जिसके द्वारा हम इस निरन्तर बदलते हुए संसार पर नजर रख सकेगें।
* जहाँ एक तरफै बद्रीनाथ धाम में प्याज की बदबू से भी मन में | | वितृष्णा पैदा होती है वहीं रामेश्वरम या जगन्नाथपुरी के क्षेत्र में मछली
की बदबू का भी हम बुरा नहीं मानते हैं।
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