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मन से ही प्रेम और मन से ही भक्ति
भवों के दौरान हमें अच्छा भी लगेगा और बुरा भी । यही इस संसार का नियम है । इस दुनिया के सम्बन्ध सदा साश्वत नहीं रहते । जब हम इनको स्थिर मान लेते हैं, बस तभी हम गलती कर जाते हैं। हम इनमें स्थिरता लाने का कितना ही प्रयास क्यों न करें, लेकिन इस संसार में प्रत्येक क्षण निरन्तर बदलाव आता रहता है इसलिये हम हमेशा असफल ही होते रहेंगे और इसलिए हमें इसके साथ उस बदलाव को सहन करने के लिए हर समय तैयार रहना ही पड़ेगा। पता नहीं कल कौन सी परिस्थिति बदल जावेगी। परिस्थितियों के बदल जाने से हममें बदलाव नहीं आये ऐसी ही योग्यता हमें अपने भीतर जात करनी है। यही से ही हमारी अपनी और सच्ची प्रार्थना का उदय होता है।
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