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योग और साधना
शुरू करते समय लिखते हैं।
"योगश्चित्त वृत्तिनिरोधः"।
अर्थात जिसने अपनी चित्त की वृतियों पर काबू पा लिया है केवल वही योगी है या योग साधता है अन्य दूसरा कोई नहीं।
लेकिन यहां यह भी अवश्य अपने ख्याल में ले लें कि इस संसार में ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है, जिसके ऊपर कभी दुखों को मार नहीं पड़ी हो। इसका मतलव यह नहीं लगा लेना चाहिये कि, इस संसार में एक भी व्यक्ति योगी नहीं है । जबकि योगी तो वह होता है जो सुख और दुःखों से ऊपर उठकर अपने मन पर संयम करता है। यानी वह अब सुख और दुःख किसी भी प्रकार की परिस्थितियों का सामना करते हुए विचलित नहीं होता है। ऐसा प्रत्येक व्यक्ति योगियों की श्रेणी में आता है । भगवान महावीर के कानों में लोगों ने कीलें ठोक दी, मंसूर को सूली पर चढ़ा दिया, ईसा मसीह को काम पर लटका दिया लेकिन कभी भी इस प्रकार के व्यक्तियों को उनके स्वयं के ऊपर महान संकट आते हुये उन्हें अपनी दार्शनिकता से विचलित होते हुये किसी ने देखा ? और लोगों की बातों को जाने दे, महात्मा गांधी तो अभी-अभी हमारे सामने से ही गुजरे हैं। मैंने सुना है, मरते २ भी उन्होंने अपने हत्यारे को हाथ जोड़ कर नमस्कार किया था। अपने शरीर में गोलियों के लगने के पश्चात वे भी साधारण आदमी की तरह से क्रोधित हो सकते थे लेकिन प्रत्यक्ष दशियों का कहना है कि उन्होंने अपने अन्तिम क्षण कितनी शान्ति के साथ व्यतीत किये।
जिस व्यक्ति के मन से सुख और दुःख की व्यर्थता चली गई, ध्यान रखना उसका कोई शत्र भी नहीं हो सकता, जिस प्रकार से उसका कोई मित्र नहीं होता । गांधी इस बात के लिए हमारे सामने प्रमाण हैं । उन्होंने मरते समय गौडसे को अपना शत्रु नहीं माना था, हां यह हो सकता है कि गोड़से अपनी नासमझी में गांधी को अपना शत्रु समझ बैठा हो जिसके कारण वह घटना घटी।
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