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मृत्यु को स्वीकार करना ही सत्य को स्वीकार करना
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होती है । लेकिन बेहोशी की अवस्था में हमारी आकांक्षा ही जागरूक नहीं रह सकती है । तब फिर हम अगले जन्मों की नियति को किस प्रकार से निश्चित कर सकते हैं । जिस प्रकार से हम बेहोशी में मरते हैं ठीक उसी प्रकार को बेहोशी में हमारा अन्धकार पूर्ण दुःखों से भरा हुआ अगला जन्म हो जाता है।
आपने महाभारत की कथा में यह तो अवश्य ही पढ़ा होगा कि उस धर्मयुद्ध में बहुत से राजा सिर्फ इसलिये ही शामिल हुए थे कि इसमें शामिल होने के पश्चात और मृत्यु का वरण करने के बाद उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी । कैसे होती है स्वर्ग का प्राप्ति ? आगे के सोपानों को समझने के लिए इस बात की गहराई को समझ लेना बहुत ही जरुरी है । मृत्यु तो सभी की होती है लेकिन कुछ तो मृत्यु के आने से ४ दिन पहले ही बेहोश हो जाते हैं, जबकि दूसरे प्रकार के लोग मृत्यु का वरण स्वयं अपने होश में हिम्मत के साथ करते हैं। और सुकरात की तरह भी जहर पीकर मरते समय भी आखिरी सांस तक मृत्यु के भय से पीड़ित होते नहीं दिखाई देते हैं । सुकरात के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपनी जिन्दगी में इतना कीमती सन्देश नहीं दिया था जितना कि उन्होंने अपनी मृत्यु के द्वार पर खड़े होकर दिया था। जिसके कारण ऐसा लगता है कि वे अपनी मृत्यु का कितनी बेसब्री से इन्तजार कर रहेथे । महात्मा गांधी के धड़ में तीन गोलियां लग चुकी थी। उनके पास तो सुकरात से भी कम समय था। उस थोड़े से समय में भी वे अपनी
__सुकरात का संदेश—उनका कहना था कि मृत्यु से डरने की। कतई जरुरत नहीं है, क्योंकि मैं अपनी मृत्यु को इस समय पर देख रहा हूँ कि यह तो केवल मेरा शरीर ही छीन रही है। आज तक मैं इस शरीर को ही | मैं, स्वयं समझता रहा था लेकिन आज यह गलत हो गया है क्योंकि यह शरीर तो मेरे देखते-देखते मिट रहा है लेकिन मैं तो फिर भी वैसा ही ठीक है जैसा कि पहले था ।
उस अवश्यम्भावी मृत्यु से घबड़ाये नहीं और अपने आपको पूर्ण रूपेण होश में बनाकर रखते हुए तथा साथ ही अपनी जीवन भर की साधना को पूर्णता प्रदान करते हुये "हे राम' कह कर विदा ली । विनोबा को दिल का दौरा पड़ा था। चिकित्सक उनकी चिकित्सा करके उनके जीवन का बचाव करना चाहते थे। लेकिन उन्होंने
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