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योग और साधना
रुपया भी है फिर भी मेरी भूख नहीं मिटती। अब आप ही सोचें कहीं केवल रुपया अपने पास होने मात्र से किसी के पेट की भूख मिट सकती है पेट की भूख तो इस दुनियां में रुपये का उपयोग सीख कर भोजन प्राप्त करने के पश्चात ही मिट पायेगी । इसलिये ही मैंने लिखा है कि दोनों ही स्थितियां दुखदाई है। एक में हमें मृत्यु का पता नहीं है जबकि दूसरी जगह हमारे सामने मृत्यु रूपी सत्य प्रकट हो गया है । लेकिन उसे हम स्वीकार नहीं कर पाये हैं। इसलिए डर गये हैं और हमेशा इस दुनिया में ऐसा ही होता है कि जिन चीजों को हम आत्मसात या स्वीकार नहीं कर पाते अथवा उनसे साक्षात करने की हम हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं उनसे हम डर जाते हैं। लेकिन यदि हमें इन दोनों दुखवाई स्थितियों से उभरना है तो सर्वप्रथम हमें नृत्यु रूपी सत्य को स्वीकार करके चलना होगा। अन्यथा वह मृत्यु नब आयेगी तब तो आयेगी ही, उससे पहले भी जब तक हम जीवित हैं उस मृत्यु के डर से उत्पन्न स्थिति के कारण अपनी बाकी जिन्दगी को जी नहीं पाते हैं ।
अब जरा गौर पूर्वक इसको समझने की चेष्टा करें। शुरू में ही यदि मैं आपसे मृत्यु को स्वीकार करने के लिए कहूँ तो आप उसे कैसे स्वीकार कर पायेगें। इसलिए उस भयभीत करने वाली मृत्यु को स्वीकार करनेसे पहले हमें अपने जीवन में कुछ हल्की और आसान मृत्युओं पर विजय प्राप्त करने की आदत डालनी होगी। तब ही अन्त में हम विनोबा की तरह, गांधी की तरह, ईसा मसीह की तरह और बुद्ध की तरह से ही होश पूर्वक अपनी मृत्यु को स्वीकार कर पायेगें। अन्यथा मरते तो सभी हैं। लेकिन बेहोशी में ।
आप कह सकते हैं कि मृत्यु के रूप में हमारा हमसे सब कुछ छूटा जा रहा है और आप उस कठिन समय पर भी हमसे आँखें खोलने की कह रहे हैं या होश पूर्वक उसे देखने की कह रहे हैं । आपकी शंका इस संसार को देखते हुए ठीक भी लगती है। क्योंकि अभी तो हम अपनी खुली आँखों के सामने अपने शरीर में डाक्टर को मात्र दवा की इंजेक्शन चुभोते भी नहीं देख सकते । और अपना उस तरफ से मुंह फेर लेते हैं फिर हन मृत्यु के समय कैसे अपना होश रख सकते हैं । लेकिन विद्वानों का कहना है कि "अन्त मता सो गता" यानि मरते समय जैसी भी हमारे मन की स्थिति होती है वैसी ही नियति हमारे भविष्य में होने वाले जन्मों की
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