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योग और साधना
से पण्डित जी का जीवन यापन होता रहा । उन्हीं दिनों राजकुमार जो अब ५ साल का हो गया था, नित्य प्रति पण्डित जी के पास विद्या अध्ययन के लिये आता था । इस प्रकार पढ़ते-पढ़ते जब काफी समय गुजर गया और राजकुमार वयस्क हो गयाँ तो एक दिन पढ़ाई के दौरान पण्डित जी उसे बता रहे थे कि हमारे देश में जो गंगा नदी है, उसमें अपने सम्पूर्ण परिवार एवं गुरुजन सहित स्नान करने से राजा भगीरथ की तरह अपने पिछले जन्मों के सभी पापों से वह व्यक्ति मुक्त होकर स्वर्ग को जाता है । इस बात को सुनकर वह राजकुमार भी अपने गुरुजी को जिन्हें वह प्राणों से भी ज्यादा प्यार करता था, बोला--
"अगर ऐसा है तो फिर गुरुजी हमें भी अपने साथ गंगा स्नान कराइये ।"
इतना सुनते ही गुरुजी पर तो जैसे बिजली ही टूट पड़ी और बोले “हमतो गंगा जी की तरफ जा भी नहीं सकते"।
इस पर राजकुमार ने प्रश्न किया। “ऐसा क्यों ? मापने जो अभी हमें बताया था क्या वह असत्य था ?"
पण्डित जी बड़े भारी संकट में पड़ गये क्योंकि कारण कुछ भी नहीं बता सकते थे और जा भी नहीं सकते थे। बात जब और आगे बढ़ी तो राजा के कानों में भी पहुँच गयी। वह भी राजकुमार की बातों से सहमत थे। अन्त में पण्डित जी को राजा के लिए यमराज वाली तमाम बातें बतानी पड़ी। इसना सुनते ही के पश्चात् राजा हाथ जोड़कर पण्डित जी से बोला--
___ "आप हमारे पूरे राज्य के पिता तुल्य, हैं हम आपको क्यों खोना चाहिगें, जिस दिन से आपने हमारी राज्य की सीमा में कदम रक्खा है, सम्पूर्ण राज्य में सुख और शान्ति का निवास हो रहा है और रही बात मगरमच्छ की, मैं वहाँ नालियों का ऐसा इन्तजाम करूंगा कि मगरमच्छ तो क्या वहां गंगा के पानी के भलावा एक तिनका भी नहीं आ सकेगा"
या तो पण्डित की मति मारी गई थी या राजा के अन्न जल का प्रभाव था,
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