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Achar
मृत्यु को स्वीकार करना ही सत्य को स्वीकार करना
अपनी मृत्यु के बारे में यमराज से जानकर पण्डित बड़ा प्रसन्न हुआ कि मैं गंगा के पास कभी जाऊगा ही नहीं तो मरूगों कैसे ? उसने उसी दिन से अपनी मौत को जानकर गंगा की धारा से दूर जाने की गरज से यात्रा शुरू कर दी । जैसे गंगा यदि देश के उत्तर दिशा की ओर बहती है तो वह दक्षिण की दिशा को जाने लगा। जबउसे यात्रा करते-करते महीनों व्यतीत हो गये तब वह निर्जन और घनघोर जंगल में जहाँ आदमी की छाया भी दिखाई नहीं देती थी रुक गया । भूख और प्यास को तो उसे चिन्ता थी ही नहीं, क्योंकि उसे पता था भूख प्यास या अन्य किसी प्रकार का कोई जंगली जानवर उसकी मृत्यु का कारण नहीं बन सकता है । यह सुबह से ही ध्यान में बैठ गया, दोपहर को उधर से वहाँ का राजा शिकार पर निकला तो उसे ध्यान में बैठा वह पण्डित दिखाई पड़ा। ऐसे बियावान जंगल में जहाँ खाने पीने का कोई भी साधन न हो, राजा यह सोचकर कि यह कोई पहुँचा हुआ सिद्ध महात्मा है वही पर रूक कर इन्तजार करने लगा। घन्टे दो घन्टे में जब पण्डित की ऑखें खुली तो उन्होंने अपने सामने राजा सरीने व्यक्ति को दण्डवत प्रणाम करते हुये पाया । पहिले तो उसे बहुत ही आश्चर्य हुआ। लेकिन थोड़ा सा संयत होने के पश्चात उन्होंने राजा से प्रश्न किया
"क्या बात है और यहाँ क्यों आये हो ?"
राजा बोला-- शिकार करने जा रहा था रास्ते में आपको देखकर यहीं रुक गया कि आप जैसे महान योगी हमारे राज्य की सीमा में है, क्यों न आप राजमहल पधारें, मैं आपको अपने राजमहल ले चलने के लिए ही यहाँ रुक गया था।
इस बात को सुनने के पश्चात पण्डित बोला “राजन् यह तुम्हारा भ्रम हो है कि हम इस स्थान से हटकर और कहीं जायेगें।'
'कोई बात नहीं है मैं आपसे आकर यही मिल लिया करूंगा। केवल आपके खाने पीने का इन्तजाम मेरे द्वारा स्वीकार कर लीजिये।" ऐसे शब्द राजा ने कहे ।
यह बात पण्डित ने मान ली समय गुजरता गया। और राज्य के अन्न जल
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