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योग और साधना
जिसमें हमने अपने ज्ञान का इस्तेमाल करके यह पता लगा लिया है कि जब हमने इस दुनियां में जन्म लिया है तो हमारी अपनी मृत्यु भी निश्चत ही है। लेकिन इसके साथ ही हमें अपनी सुनिचित मृत्यु का पता चलते ही, कि वह हर पल और क्षण के बाद हमारे नजदीक और नजदीक आती जा रही है, हम उससे अपने हर आपको बचाने के लिए अनेक उपाय अपनी बुद्धि से करने लगते हैं। जैसे हमने किसी से सुन रखा है कि हमारे जीवन के स्वासों की संख्या निश्चित है इसलिए जितनी हम कम साँसें लेगें हमारी मृत्यु हमसे उतनी ही ज्यादा दूर चली जावेगी
और इसकी पूर्ति के लिए हम अपनी साँस को रोककर प्राणायाम करने लगते हैं यदि अन्य किसी से हमने यह सुन लिया है कि जितना दाना पानी हमारी किस्मत में खाना लिखा है उतना तो हमें यहाँ रहकर खाना ही पड़ेगा। बस हम अन्न छोड़ देते हैं, व्रत रखते हैं, लम्बे-लम्बे उपवास रखते हैं, और कुछ नहीं तो दिन में जहाँ हम दो समय भोजन करते थे वहाँ हम अब एक समय ही भोजन करते हैं ।
इसी संदर्भ में मैंने एक पण्डित जी की कथा सुनी है जो कि इतने भारी विद्वान थे, अथवा इतने बड़े साधक' थे कि उन्हें यमराज साक्षात रुप से दिखाई देते थे जो कि इस पृथ्वी पर मत्यु को प्राप्त हये लोगों को लेने आते थे। एक बार यमराज से पण्डित जी ने पूछा;
"आप सभी को देने आते हैं किसी न किसी दिन मुझे भी लेने आयेंगे ही, तो कृपया मुझे यह बतायें कि मेरी मृत्यु किस प्रकार से होगी ?" यमराज ने उसकी भलाई सोचते हुये कहा कि
“यह प्रश्न दुबारा मुझसे नहीं करना अन्यथा तुझे बहुत ही मुश्किलें उठानी
पड़ेगी"
लेकिन पण्डित नहीं माना और कहने लगा "आप मुझे बताना नहीं चाह रहे हैं इसलिए मुझसे इसका बहाना बना रहे हैं"
यमराज बोला "मुझे तुझसे डर थोड़े ही लगता है जिसके कारण से मैं तुझसे बहाना करूंगा। खैर, यदि तु नहीं मानता है तो मैं बताये देता हूँ तेरी मृत्यु गंगा में मगरमच्छ के खाने से होगी।" इतना कह कर यमराज चले गये ।
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