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सुबुद्धिनी अघांतर कथा जितशत्रु नामे राजा हतो. जेम वर्षाकाळ आसारधारावृष्टिए सहित होय छे, तेम ते राजा आसार-विशाळसेनासैन्य सहित हतो. जेम वर्षाकाल पंक-कादवने करनारो होय छे, तेम ते राजा पंकपापने छेद करनारो हतो. जेम वर्षाकाळ कंदल-अंकुरोने स्फुरायमान करनारो होय छे, तेम ते कंदलने-युद्धने फोरवनारो हतो अने जेम वर्षाकाल दुर्दिन-अंधकारवाळा घनघोर दिवसने करनारो होय छे, तेम ते दुर्दिननठारा समयन खंडन करनारो हतो. परंतु जेम वर्षाकाळ जीवन-जल मेळववाना उपायरूप होवाथी लोकोमा मान्य थाय छे, तेम ते राजा सर्वने जीवन-आजीविका मेळववाना उपायरूप होवाथी प्रजामां मान्य थइ पड्यो हतो. ते राजाने चार प्रकारनी बुद्धिना भंडाररूप, चार प्रकारना धर्मना मर्मने सारी पेठे जाणनार अने मंत्र-विचारणा करवामां चतुर एवो सुबुद्धि नामे एक मंत्री हतो. ते मंत्रीना बुद्धिना बलथी ज राजा पोतानुं मोटे राज्य चलावतो हतो. कारण के लोकोमा सर्व बळना करतां बुद्धिनुं बळ मोटुं गणाय छे. ते राजाना राज्यमां लोको दंडनो भय जाणता जन हता अने लोकोने तेनो कर सहेलो थइ पड्यो हतो अने पीडा आपनारी चोर लोकोनी तो कोइ वात ज जाणतुं नहीं. ते राजा सर्पोथी वीटायेला वृक्षनी जेम पोते क्रूर छतां पण पोताना गुणी सेवकोने सुखरूप थतो अने पोते सौम्य छतां पण दुष्ट सेवकोने दुःखरूप थतो हतो. तेनो मंत्री सुबुद्धि-सारी बुद्धिवाळो होवाथी हमेशां राजानी पासे धर्मवार्ता करतो हतो. एक वखते राजा सभामां बेठो हतो, त्यारे ते मंत्रीए आ प्रमाणे धर्मनी विशेष वार्ता कहेवानो आरंभ कर्यो. ""पर्वनी जेम सुगुण अने श्रेष्ठ वंशमां थयेला धर्मने प्राप्त करी पुरुषो शत्रुओ उपर रोष लाव्या वगर पण पराक्रमवाळा, पुरुषोमां उत्तम अने विश्व उपर मोटं बल धरावनारा थाय छे अने जेओ धर्म-बळवगरना निर्बळ छे, तेओ पाषाणना जेवी काया धरावता होय तो पण तेओ पराक्रमने योग्य नथी. वळी धर्मथी सारा कुलमां जन्म थाय छे, धर्मथी सर्व प्रकारनी संपत्तिओ मळे छे, धर्मथी प्रभुपणुं, इंद्रपणुं अने तीर्थकरपणुं प्राप्त थाय छे. आ स्थावर जंगम सहित एवा त्रैलोक्यमां जे जे शुभ वस्तु छे, ते सर्व आपणने धर्मना प्रसादथी प्राप्त थाय छे."।।१६० ।।
सबद्धि मंत्रीना आवां वचनो सांभळी राजा बोल्यो; "मंत्रिन्, तमे जे कह्यं ते बधुं खोटुं छे; आ त्रण लोकमां जे जे उत्तम वस्तु छे, ते ते पापथी ज प्राप्त थाय छे. जुओने, हुं पोते ज जीवोने मारुं छु, मृषा बोलुं छु अने बीजा द्रव्य 1. पर्व एटले वामनी ग्रंथि ते श्रेष्ठ वंशमां-सारा वांसमां थाय छे. धर्म पण सारा वंश-कुलमां प्राप्त थाय छे.
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श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग