Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 349
________________ आठमा व्रत उपर वीरसेन अने पद्मसेननी कथा विरती करेल छे तेथी आनो संग तारे सर्वथा वर्जवो. पिताए विचारवा योग्य घणा वचनों वडे ना पाडया छतां पिताना सारा विचारोने तरछोडीने पद्मसेने तेनी संगत न छोडी. रातदिवस एनी संगतमां ज रहेवा लाग्यो. ___एक वखत रत्नचूड नामनो एक मित्र तेने मल्यो तेणे पण तेनी पासे रहेल मंत्र पाठ शिख्यो. ते पछी तेणे पूछ्युं. तारी पासे मंत्रो छे ते मळशे. तेणे कडं के तेणे मने कुटमंत्रादि आपीने ठग्यो छे. पद्मसेन ते सांभळीने तेना प्रति बोल्यो. जो आ प्रमाणे होय तो मने औषधादि मंत्र कह्या छे ते सर्व सत्य ज छे. तुं मारी पासेथी वंध्याकल्प ग्रहण कर. कारण के स्त्रीओने पुत्रादिनी प्राप्ति निश्चयथी थाय छे अने आपणुं महत्व वधे छे. तेथी रत्नचूडे ते ग्रहण कर्यो. ते पछी तेणे राजराणीना उपर ते प्रयोग कर्यो. उत्कुट औषधना प्रयोगथी ते मरणावस्थाने प्राप्त थई राजाए पोताना पुरुषो द्वारा तेने रत्नचूडने बोलावीने मयुरबंधथी बंधाव्यो. अने लोकोमां तेनी निंदा थई. राजाए कयुं. रे अधम! ते आ शुं कर्यु हमणां मारी पत्नी शेष जीवितवाळी थई गई छे. जेथी मारी हमणां शी स्थिति थई छे. तेणे का. मने पद्मसेने वंध्याकल्प आप्यो हतो ते में निष्पुत्रीदेवी उपर प्रयोग कर्यो. राजाए तेने निरपराधी मानीने छोड्यो. पछी पद्मसेनने बोलावीने कोपसहित तेने कह्यु के ते रत्नचूडने वंध्यादोषने हरण करनार खोटो कल्प केम शिखवाड्यो? ते वखते पद्मसेने कह्यु. के हुं तेने ओळखतो नथी. ते सांभळीने राजाए विचायुं । आ कूटभाषी छे एमां संशय नथी. क्रोधथी जाज्वल्यमान राजाए कह्यु के तारा पोताना दोषथी जो मारी पत्नीने कांई विरुद्ध थई गयुं तो निश्चयथी तारो शिरछेद करावीश. राजाना ते वचन सांभळीने भयभ्रांत थयेलो ते हृदय फाटवाथी मरीने चोथी नरकमां गयो. वीरसेन पाप संतापथी दूर रहीने पोताना लीधेल व्रतने सारी रीते पाळीने आयुष्यपूर्ण करीने ईशान देवलोकमां देव थयो. पोताना आत्मानु हित ईच्छनाराए आ प्रमाणे अनर्थदंडना निषेधथी अने आदरथी प्राप्त सुखदुःखने जाणीने आ अनर्थदंड निवारण करवं. आ प्रमाणे अष्टम् व्रत कह्यु. आशानी विरती जेमां मुख्य छे एवा आ त्रण गुणव्रतोंना स्वरूपने भव्यात्मा श्रावको माटे जगद्गुरुए कह्या. ।।५३०।। इति अष्टमंव्रतम् श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग 319

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