Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 365
________________ बारमा व्रत उपर शांतिमती अने पद्मलोचननी कथा विमानमा उत्तम देवता थयो, आवी रीते अन्य धन्य जनोए पण ए पौषध व्रतनी आराधना करवी के जेथी भवोभव सर्व अर्थनी सिद्धि थाय.।।८०९।। इति एकादशंव्रतम् कोई अतिथिने कांई पण आपीने पछी जमवं, ते भोजन कहेवाय छे. ते सिवाय तो आ लोकमां कागडा वगेरे पण पोताना उदरनुं पोषण करे छे. कदि ते प्रमाणे हमेशां न थाय, तो विवेकी पुरुषे पौषधना पारणाने दिवसे तो पात्रने भोजन आपीने ज जमवू जोईए. जे पुरुष ते अतिथिसंविभाग नामनुं व्रत आराधे छे. ते शांतिमतीनी जेम अवश्य सुखनुं पात्र बने छे अने जे तेनी विराधना करे छे, ते पद्मलोचनानी जेम आ लोक तथा परलोकमां दुःखने पामे छे. शांतिमती अने पद्मलोचनानी कथा संपत्तिमां विशाळ अने भरतक्षेत्रना मंडनरूप विशाळ नामना नगरमां श्रावकना शुद्धगुणवाळो साधारण नामे श्रावक रहेतो हतो. तेने एक शांतिमती नामे पुत्री हती, ते बाळविधवा हती अने बीजी पद्मना जेवा लोचनवाळी पद्मलोचना नामे पुत्री हती, ते सधवा हती एक वखते ते बंने बहेनोए गुरुनी पासे हर्षथी गृहस्थ धर्म अंगीकार कर्यो अने तेमां अतिथिसंविभागनुं व्रत विशेषपणे ग्रहण कयु. ते उत्तम बंने बहेनो सुखथी व्रत पाळती हती, तेवामां एक वखते वर्षाऋतु आवी. तेमां निरंतर वृष्टि थया करती हती. ते काले अप्काय जीवोनो वध थवाना भयथी मुनिओ भिक्षाटन करता नहिं. कारण के तपस्विओनी एवी मर्यादा छे. तेने लईने ते बंने बहेनोए पांच दिवस सुधी उपवास कां. पांचमा दिवसनी रात्रिने अंत भागे पद्मलोचनाए पोताना हृदयमां विचायु के, "शांतिमतीने गळे बंधायेली हुं क्षुधार्नु कष्ट शा माटे वेर्छ? जेने माटे बीजा देहनो संदेह रहे एवा आ देहमां हुं अत्यंत दुःखी थाउं छु." आ प्रमाणे चितवी तेणीए प्रभातकाळे छूपी रीते घणुं भोजन करी लीधुं. क्षुधाना जेवी बीजी वेदना नथी. तेने माटे गांधारीनुं आ प्रमाणे वचन छे. "हे वासुदेव! जरावस्था, निर्धनता, विधवापणुं अने पुत्रनो शोक. ए बधा कष्टोना करतां पण क्षुधार्नु कष्ट वधारे छे."1 माता पिताए मान्य, दातार अने शांतिवाळी पोतानी सती पुत्री शांतिमतीने कडं, "हे निर्मळ वत्से! तुं 1. यतो गांधारीवाक्यं वासुदेव! जरा कष्टं, कष्टं धनविपर्ययः । वैधव्यं पुत्रशोकं च, कष्टात्कष्टतरी क्षुधा ।।८२२।। श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग 335

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