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गणधर देशना अने प्रभनो परिवार
बलिइंद्रे डाबी दाढ ग्रहण करी, बाकीना इंद्रोए योग्यता प्रमाणे प्रभुना दांत ग्रहण कां, बीजा देवताओ प्रभुना अस्थिना खंड लई गया अने ब्राह्मणोए नवा अग्निना भाग लीधा. त्यारथी ते अग्निनी पूजा प्रवर्ती छे अने ते पूजनारा ब्राह्मणो अग्निहोत्री तरीके प्रख्यात थया छे. राजा वगेरे ते प्रभुनी रक्षानी पोटली करीने बांधी, ते प्रवाहरूपे अद्यपि रक्षाने रक्षा करनारी माने छे. केटलाएके ते प्रभुनी रक्षाने वंदना करी अने केटलाएके ते रक्षानें शरीरे मर्दन कयु, ते उपरथी राख चोळवानो विधि अद्यपि पण लोकोमा देखाय छे. केटलाएक लोकोए त्यांथी एटली बधी रज लीधी के जेथी त्यां मोटो खाडो थई गयो. पछी देवताओए त्यां उपर रत्नमय स्तूप बनाव्यो, त्यार बाद सर्व इंद्रो नंदीश्वरनी यात्रा करी पोतपोताने स्थाने चाल्या गया. देवताओनी सर्वदा ए ज मर्यादा छे.
भगवान् श्री विमलप्रभुने कुमारपणामां पंदर लाख वर्षो, व्रतमां पण पंदर लाख वर्षो अने राज्यमां त्रीस लाख वर्ष-एम सर्व मळीने साठ लाख वर्षतेमनुं आयुष्य हतुं. श्री वासुपूज्य स्वामीना निर्वाण पछी त्रीस सागरोपम वीत्या बाद श्री विमलनाथ प्रभुनुं निर्वाण थयु. स्वयंभू वासुदेव पोतानुं साठ लाख वर्षनुं आयुष्य भोगवी पापकर्मना योगथी छट्ठी नरके गयो. ते वासुदेवने कौमारपणामां बार हजार वर्ष देशाधिपतिना पदमां बार हजार वर्ष, नेवू हजार वर्ष दिग्विजयमां अने अर्थने साधनारा वासुदेव पदमां ओगणसाठ लाख पंचोतेर हजार अने नवसो दश वर्ष थयां हतां. पछी भद्रबळदेवे मुनिचंद्र मुनिनी पासे जईने दीक्षा लीधी. पोता पांसठ लाख वर्षतुं आयुष्य पूर्ण करी अने कर्मोनो क्षय करी ते परम पदने प्राप्त थयो.
श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग
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