Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 363
________________ अगियारमा व्रत उपर मलयकेतुनी कथा छे, तेथी तेमां कोई जातनो बाध आवतो नथी तेमज जिनागममां पण तेनो बाध आवतो नथी, कारण के अहिं जे चितामांथी मनुष्य प्राणीनी उत्पत्ति कहेली छे, ते लोकरूढीथी कहेली छे. जिन भाषाथी कहेली नथी. अहिं हरिबल अने तेनी बे स्त्रीओ एम त्रणे मळीने ज्यां वार्ता करता हता, तेवामां राजा त्यां आव्यो ते वखते कुसुमश्रीए कह्यु के, "हे स्वामी, द्वार उपर राजा आव्यो छे तेथी तमे अदृश्य रही अमाझं स्वरूप जुओ, के जेथी राजाने पण तमारी जाण न थाय" पछी हरिबले तेम कर्यु एटले कुसमुश्रीए गृहद्वार उघाड्यु. राजा एकाकी पापबुद्धिथी घरमां पेठो. कुसुमश्रीए राजाने आसन आपी पूछ्युं के, "अत्यारे रात्रे आपर्नु आगमन शा माटे थयुं छे?" राजाए का "तमो बंने युवतिओने बोलावाने माटे." कुसमश्री बोली, "आप राजाने ते घटतुं नथी. अतिशय रूपवाळी प्रजा पण तमारे प्रजापतिनी जेम प्रजारूप ज होवी जोईए. तमो तेमां मोहित न थाओ." आ प्रमाणे तेने समजावी वार्यो छतां पण ज्यारे तेणे आग्रह छोड्यो नहिं, त्यारे तेणीए फरीवार कयं के, "आजनो दिवस राह जुओ, कारण के अमारे पति मरणनो शोक छे. जो शोक न पाळीए तो लोको निंदा करशे." तेनी आवी वाणी सांभळी राजा ते दिवसे पोताने घेर गयो पछी हरिबले पेली जळदेवीनु स्मरण कयुं, एटले ते आवीने हाजर थई तेणे तेने ते वृत्तांत जणाव्यो, ते उपरथी ते एक देव अने दिव्य आभूषणो आपी चाली गई. प्रातःकाळ थयो, एटले ते हरिबल . दिव्य वेष धारण करी. बीजा दंडधारी देवने साथे लई हर्ष पामतो राजानी पासे आव्यो. प्रतिहारे खबर आपतां राजा अने मंत्री सिवाय बधी सभा हर्षित बनी गई. तेणे राजाने नमस्कार कर्यो, राजाए पूछ्युं के, "यमराजने घेर कुशळ छे?" तेणे कडं, "हे विभु, यमराजने घेर कुशळ छे." राजाए पेला देवने जोईने पूछ्युं के "आ कोण छे?" "आ यमराजानो दूत छे." तेणे उत्तर आप्यो. पछी ते दूत राजा प्रत्ये बोल्यो, "राजन्! आ हरिबले तमारा कहेवा प्रमाणे यमराजने कह्यु, ते उपरथी तेओए हृदयमां हर्ष पामीने मने मोकल्यो छे अने मारे मुखे कहेवडाव्यु छे के, "तमे हर्षथी सर्व उत्तम परिवार लईने एक वखत मारे घेर आवशो तो पछी अमे सर्वनी भक्ति करवा तमारे घेर आवीशं." आ सांभळी राजाए सवत्तिथी मंत्रीना मुख सामे जोयुं, मंत्री सर्व दिव्य आभूषणोथी विभूषित एवा हरिबलने जोई लोभाईने बोल्यो- "देव आपणे चालो यमराजने घेर जईए. कारण के पर घेर जवा आववाथी मैत्री वधे छे." पछी राजानी आज्ञाथी राजपुरुषोए मोटी चिता तैयार करी, तेनी अंदर प्रवेश करवाने राजा मंत्री वगेरेनी साथे हर्षथी श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग 333

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