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सम्यक्त्व उपर कुलध्वजनी कथा ते तारी पत्नीने अने तेने रूप नथी, तो ते तारा रूपने पण केम सहन करी शके? माटे वाहनवाळा, लक्ष्मी, स्त्री अने शस्त्रवाळा अने अधिक अवयववाळा भक्तवत्सल देवनो तुं आश्रय कर.
वळी हे सत्तम! जे गुरु तारा मनमां निरंतर रह्या करे छे, ते गुरु पण कोईनं रक्षण वगेरे करी शके तेवा नथी. माटे जे गुरु अरिष्टनी शांति करे, ज्योतिष जोई आपे, रोग होय तो वैदुं करे, वेद प्रमाणे व्यवहार करे, बीजाने शाप आपे, पोताना जननो अनुग्रह करे, काम वखते जाये आवे, भक्तोना पाप पोते ले अने जेना मनमां जेवू रुचे तेवू हितकारी बोले, तेवा ममता मोहवाळा गुरुने भज. तारो सर्वज्ञ देव के जे सर्वनो हितकारी छतां पोते वांछाथी रहित अने दयाए सहित छे तेने तुं तारो पोतानो हितकारी माने छे, पण तेनाथी तारुं हित शी रीते सिद्ध थाय?
जेमां ब्राह्मण वगेरेने सर्वनुं दान, यज्ञ वगेरेमां सोमरसनुं पान, जलना प्रमाण वगरनुं तीर्थ अने पुत्रादि संतान-ए स्वर्गने आपनारुं छे जेमां मरेला पितृओने पण पुत्रो तृप्त करे छे, भोजननी वेळाए कागडाओ पात्र गणाय छे अने वृक्ष, सर्प तथा गाय वगैरेनी पूजा करवी कहेली छे, जेमां पत्नीवाळा पण गुरुने लोको आदरथी माने छे, सामान्य देवदेवीओने पोतानो जीव पण अपाय छे अने जेमा अढारे वर्णो रहेला छे, तेवा धर्मनुं तुं आचरण कर" ते निमित्तियानां आवां वचनो सांभळी कुमार बोल्यो, "मारा हृदयमां सर्वज्ञ देव, निःसंग गुरु अने जीवदयाथी रमणीय धर्म ज वसी रह्या छे. आकाशमां गति करनारो मारो अश्व, हृदयने प्रिय एवी स्त्री अने रक्षण रहित आ मारा प्राण जो जता होय, तो ते भले जाय, पण हुं निश्चल अने निर्मल एवा मारा सम्यक्त्वने त्यजीश नहिं." आवो कुमारनो दृढ निश्चय जाणी ते मिथ्यादृष्टि देव मिश्रदृष्टि (मध्यस्थ) बनी गयो. तत्काळ तेणे अश्व अने तेनी स्त्री प्रगट करी अने तेनो आदरथी सत्कार करी पछी ते देव पोताने स्थाने चाल्यो गयो. कुमार पण पोताने स्थाने गयो. तेणे अनुक्रमे राज्यने प्राप्त करी आ पृथ्वी उपर सम्यक्त्वनुं स्थापन कयु. कारण के प्रजा राजाने अनुसरनारी थाय छे. ते चिरकाळ राज्यने अने विधि प्रमाणे सम्यक्त्वने पाळी छेवटे दीक्षा लई मोक्षने प्राप्त थयो. एवी रीते जे मनुष्यो पोताना हृदयमां सदा अतिचार रहित सम्यक्त्वने धारण करे छे, ते मनुष्यो धन्य अने सुकृती (पुन्यशाळी) आत्माओमां गणनीय थाय छे. ।।९४८।।
इति सम्यक्त्वम्
श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग
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