Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 352
________________ नवमा व्रत उपर वानरनी कथा पुष्प वगेरेथी देवीनी पूजा करी तेणे आ प्रमाणे स्तुति करी- "हे कमले! तमे सारी शोभावाळा कमलना पुष्प उपर स्थिति करो छो, तेथी ते कमळ देवताओमां पण लक्ष्मी मेळवे छे, 'कमलाकर पण एथी लोकोनी तृष्णा अने परिताप हरे छे, शारदा पण तेने पोताना हाथमांथी कदिपण छोडती नथी, सूर्य पण तेनी साथे ज मैत्री करे छे. बीजानुं शुं कहेवू, भगवान् वीतराग पण तेनी उपर पोताना चरणो धरे छे. शास्त्रमा सर्व धर्मोमां दानने प्रधान कहेलुं छे, ते दान जेना घरमां तमे हो, तेनाथी ज आपी शकाय छे." आ स्तुति सांभळी लक्ष्मीदेवी प्रसन्न थयां अने तेने वर आप्यो. कुमारे देवीने का के, "जो तमे प्रसन्न थया हो तो आ बांधेला विद्याधरने छोडी मूको." ते सांभळी लक्ष्मीदेवी हर्षित थईने बोली, "ए तो बीजानुं कार्य छे, परंतु तारुं पोतानुं कांई कार्य होय ते कहे." कुमार बोल्यो, "जे पुरुष बीजार्ने कार्य न करे अने लोकोमा पोता हित करे, ते पुरुष शा कामनो? माटे आ विद्याधरने मुक्त करो." पछी तेना वचनथी लक्ष्मीदेवीए ते विद्याधरने मुक्त कर्यो. जेथी विद्याधर भक्ति युक्त थयो अने कुमारने स्त्रीए विद्याधर- ऐश्वर्य आप्यु. ते वखते लक्ष्मीदेवीए विद्याधरने पवित्र वचन का के, "तारे आ कुमारनी सदा सेवा करवी, ते तारो स्वामी थशे. पछी तेओ वनमां फरवा लाग्या, तेवामां लक्ष्मीदेवीए निर्मेलो हितकारी श्रीशांतिनाथ प्रभुनो मणिमय प्रासाद तेमना जोवामां आव्यो. त्यां शांतिनाथ प्रभुने विधिथी नमस्कार करी ते कुमार मंडपमां आव्यो, त्यां सरस्वतीदेवीनं तेने दर्शन थy. तत्काळ तेणे सरस्वतीदेवीनी आ प्रमाणे स्तुति करवा मांडी-“हे सरस्वती! तमे आ संसाररूप क्षारने धोनारा सरस्वती नदी रूप छो, दुःखना तापने शांति आपनारा तमे शरीर धारी सरस्वती छो. हंस पण तमारा संगथी विवेकी थयो छे, तो पछी बीजा केम न थाय? जेथी शुद्ध उभय पक्षवाळो ते हंसनी रुचि 'मानस उपर थाय छे मनुष्यो तमारा बळथी, दृष्टिथी अगोचर एवा पदार्थोने प्रत्यक्ष प्रमाण जुवे छे. अन्यथा तमारा सिवाय ते सहज अंध जेवा रहे छे. वादी जनो एकसोने छ भेदवडे बीजा देवताओने जुदा जुदा माने छे, परंतु तमे तो हमेशां सर्वने संमत छो. जनसमूहे नमेला महादेव वगेरे देवताओ पण तमने भक्तिथी वंदना करे छे, तो पछी बीजा बुध-विबुधोनी शी वात करवी?" आ प्रमाणे स्तुति कर्याथी संतुष्ट थयेली सरस्वतीए संतुष्ट थई ते कुमारने एक हजार विद्याओ आपी अने शांतिमती नामे 1. कमलाकर-सरोवर. 2. दृध अने जलने जुएं करवानो विवेक हंसमां होय छे. 3. शुद्ध श्वेत उभय पक्ष-बंने पांखो. 4. मानस-मन अने मानस सरोवर. 322 श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग

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