Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 336
________________ छट्टा व्रत उपर रौहिणेयनी कथा तेवामां एक समये आयुष्यनो क्षय थतां रत्नचूड विद्याधर अपुत्र मृत्यु पाम्यो. पछी विद्याधरोए आवी देवदत्तने आदरथी आ प्रमाणे कर्दा, "तमे आरंभवाळा प्राणीओने साररूप एवा अमारा राज्यनो भार ग्रहण करो." देवदत्ते का, "राज्यनो संग्रह करवामां मने गुरुए नियम आप्यो छे, तेथी माराथी ते नहीं लेवाय." पछी तेओए ते प्रमाणे जयदत्तने कडं, जयदत्ते ते सर्व मान्य करी राज्य अंगीकार कर्यु. जे प्राणी 'आश्रवने रोकतो नथी, ते सुवृत होय, तो पण जडना आश्रयथी घटी पूरी थवाने अंते जेम ते डूबी जाय छे, तेम ते अल्प समयमां ज डूबी जाय छे. ते वखते घातकी एवा गोत्रना लोकोए जयदत्तने रात्रे मारी नाख्यो. ते मरीने घोर नरकने अने लोकोना अपवादने प्राप्त थयो. तेमज पांचमां परिग्रह परिमाण व्रतने पाळवाथी देवदत्तने आ लोक अने परलोकमां परम सुख प्राप्त थयु. ते बारमा देवलोकने पाम्यो. 'सुकाष्ठ. अल्पसंगवाळो अने आश्रवने रोकनारो पुरुष वहाणनी जेम पोते तरे छे अने बीजा "गुणवाळाने तारे छे. तेथी उत्तम पुरुषोए ते पांचमुं परिग्रह परिमाण व्रत पाळवं जोईए. ए व्रत पाळवाथी बीजा सर्व व्रतोतुं पालन थाय छे. दया (अहिंसा) वगेरे आ पांचव्रतो पंचमहाव्रतोनी अपेक्षाए गृहस्थोना पांच अणुव्रत कहेवाय छे. ।।२८३।। इति पंचमव्रतम् ___ दशे दिशाओमां जवाने माटे जे प्रमाण करवामां आवे, तेने पहेलुं दिक्परिमाण नामे गुणव्रत सद्बुद्धिवान् पुरुषो कहे छे. आ दिग्विरति नामे पहेलुं गुणव्रत ग्रहण करी जेओ तेने पाळे छे, तेओ रौहिणेयनी जेम स्वजीव- अने परजीवोनुं रक्षण करे छे. अने जेओ ते व्रत अंगीकार करी प्रमादथी अथवा लोभथी तेने विराधे छे, तेओ ते रोहिणेयना पितानी जेम नाश पामी जाय छे. रोहिणेय अने तेना पितानी कथा . पोतन नामना नगरमां मृगांकमुख नामे एक राजा हतो. तेने नीतिघट नामे एक मंत्री हतो. ते मंत्रीने रोहिणी नामे प्रिया हती. एक वखते रोहिणी सगर्भा थई, त्यारे ते मंत्रीए एक जोषीने पूछ्युं के, "आ स्त्रीने शुं आवशे?" जोषीए कह्यु, पुत्र थशे, पण तेने वीसवर्ष सुधी यत्नथी छूपो राखवो जो छूपो नहीं राखो, तो ते तमारा कुटुंबनो क्षय करशे, ते वीस वर्ष पछी सारं करशे, एमां कोई जातनो 1. आश्रव एटले कर्मनी आवक. घटीपक्षे जलनी आवक. 2. सुवृत्त-सारी वर्तणूक घटी पक्षे गोळाकार. 3. जडपक्षे जल. 4. सुकाष्ठ-सारा लाकडानु. 5. गुणवाळा पक्षे दोरीवाळा. पक्षे सारी दिशावाळु. 306 श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग

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