Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 335
________________ पांचमा व्रत उपर देवदत्त अने जयदत्तनी कथा कृतार्थ एवा देवदत्तनो उपकार करवा माटे पोताना पर्वत उपर मान पूर्वक लई गया अने त्यां तेने हर्षथी अनेक निर्दोष विद्याओ आपी, तेथी ते विद्याधर बनी गयो. दुःखी स्थिति वखते दान आपवाथी मोटु फल थाय छे. तेने माटे कद्यं छे के. "संपत्तिमां नियम, शक्तिमां सहनता यौवनवयमां व्रत अने दारिद्र्यमां दान ए घणुं अल्प होय तो पण तेथी मोटो लाभ थाय छे."1 पछी त्यां देवदत्त विद्याधरोनी उत्तम कन्याओने परण्यो अने तेणे पोताना नगरमांथी पोताना मित्र जयदत्तने त्यां बोलाव्यो, जेओ घणुं धनधान्य प्राप्त करी बीजा पोताना पक्षवालाने बोलावता नथी, तेओनाथी तो स्वपक्षीओने बोलवनारो काकपक्षी पण उत्तम गणाय छे. जे भोजन मित्रसहित कराय छे, ते पुण्य- कारणरूप छे अने जे मित्र रहित भोजन छे, तेने शुद्ध दृष्टिवाळाओए तमोमय भोजन कहेलुं छे. एक वखते अवधिज्ञानी लब्धिवाळा अने स्वहित साधवामां तत्पर एवा कोई चारण मुनि त्यां आव्या. ते सांभळी सद्भावथी भरेलो देवदत्त जयदत्तने साथे लई तेमने नमवाने अने पोताना कर्मना भारने हणवाने गयो. तेणे गुरुने प्रदक्षिणा करी अने नमी जे पूर्वे व्यंतरीए करेलो, ते पोतानो सर्व वृत्तांत पूछ्यो. ते सांभळी मुनि बोल्या-"ते व्यंतरी पूर्वभवे तारी बहेन हती. ते दुःशीला थवाथी तेणीने ते क्रोधथी घरनी बहार काढी मूकी पछी ते तापसी थई हठथी तप करी मृत्यु पामीने व्यंतरी थई. तारामां सत्त्वगुण होवाथी ते तने कांई पण करी शकी नहिं, परंतु तेणीए विद्याधरी वडे तारुं भोजन लेवडाव्युं अने तारो वध करवा तने कूवामां नखाव्यो. जंतुने पूर्व- वैर भवोभव रहे छे. कोई सारा भाग्ये तने ते कूवामां वृक्षनी शाखा मळी आवी. "पूर्वपुण्यं दुःखे साहाय्यं कुरुतेंगिनाम्" प्राणीओने पूर्व पुण्य दुःखमां सहाय करे छे" देवदत्ते पुनःगुरुने पूछ्युं, "नरकनी प्राप्ति शाथी थाय?" गुरुए कडं, राज्यथी स्वभाविक रीते नरकनी प्राप्ति थवानो संभव छे. कारण के प्राणीने आ पृथ्वी उपर मोटा परिग्रहने लईने आरंभ थाय छे अने ते आरंभथी जीवहिंसा थवाथी अने जीवहिंसाथी नरके जवानो संभव छे." ते मुनिनां आवां वचनो सांभळी ते बंने भाईओए हृदयमां भावना भावी पापनो नाश करनारो राज्यग्रहण न करवानो नियम ग्रहण कर्यो. ते उपरांत तेओए धन धान्य वगेरे पोताना नव प्रकारना परिग्रहनो इच्छा प्रमाणनो बीजो पण नियम अंगीकार कर्यो. 1. सम्पत्तौ नियमः शक्तौ, सहनं यौवने व्रतं । दारिने दानमत्यल्पमपि लाभाय भूयसे ।।२५९॥ . 2. मित्र एटले सूर्य अर्थात् सूर्यनो उदय होय त्यारे (सूर्यनी साखे) स्वजन मित्रो साथे. 3. तमोमय-अंधकारमय पक्षे तमोगुणी. श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग 305

Loading...

Page Navigation
1 ... 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378