Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 333
________________ पांचमा व्रत उपर देवदत्त अने जयदत्तनी कथा उत्तम तप आचयु. अखिल सिद्धांतनुं अध्ययन करी अंते अनशन लई ते मृत्यु पछी देवताओमां उत्तम महेंद्र थयो. आ प्रमाणे जेओ सुरेंद्रदत्तनी जेम ब्रह्मचर्य धारण करे छे, तेओ मनुष्य छतां पण देवता अने दानव वगेरेने पूजनीय थाय छे.।।२२५।। इति चतुर्थव्रतम् जे पुरुष इच्छावडे धनधान्य वगेरे परिग्रहनुं प्रमाण करे छे, ते श्रमणोपासक पुरुषने पांचमुं परिग्रहपरिमाणव्रत कहेवाय छे. ए व्रत ग्रहण करवाथी सम्यक्त्वमूल बार व्रतो ग्रहण पण थाय छे, कारण के एथी सर्वेनो नियम थई आवे छे. जे सद्बुद्धिवाळो पुरुष विधिवडे परिग्रहप्रमाण- व्रत पाळे छे, ते पुरुष देवदत्तनी जेम सुखी थाय छे, जे पुरुष ए व्रत ग्रहण करी पछी तेनी विराधना करे छे, ते जयदत्तनी जेम मरणादि दुःख पामे छे, तेथी विवेकी पुरुषे तेनी विराधनानो त्याग करवो. देवदत्त अने जयदत्तनी कथा प्रियंकर नामे एक गाममां देवदत्त नामनो एक वणिक हतो, तेने छायानी जेम दरिद्रता साथे रहेती हती. तेने जयदत्त नामे एक मित्र हतो, ते पण तेना जेवो ज निर्धन हतो. कारण के आ पृथ्वीमां समान शीलमां मैत्री थाय छे. एक वखते देवदत्त साथे भातुं लई धन मेळववा माटे ग्रामांतर जतो एक भयंकर अटवीमां आवी चड्यो. त्यां कोई नदीना तीर उपर ते भातुं खावा बेठो, तेवामां कोई एक स्त्री वनमांथी त्यां आवी. तेणीने जोई विस्मय पामी जेवामां ते कांई कहेवा जतो हतो तेवामां ते स्त्री बोली, "बंधु! मारुं वचन सांभळ-अत्यारे क्षुधाथी मारा स्वामीना प्राण जाय छे अने तुं जमे छे ते तने घटित नथी. में जे कद्यं तेनो विचार कर. क्षुधाना जेवो बीजो कोई रोग नथी, कारण के तेनाथी प्राण जाय छे अने अनना जेवू औषध नथी के, जे खावाथी क्षुधानो रोग तरत चाल्यो जाय छे." "ते मारो बनेवी क्यां छे?" देवदत्ते पूछ्युं, "तुं मारी पाछळ चाल, तने ते बतावू." ते स्त्रीए कह्यु, ते पछी ते देवदत्त तेनी पाछळ चाल्यो, केटलेक गया पछी भूख्यो, तरस्यो, श्रांत, भ्रांत अने संपत्ति रहित ते पुरुषने तेणे पृथ्वी पर पडेलो जोयो, तेणे पोतानो हाथ लांबो को एटले देवदत्ते तेने भातुं आप्युं, पछी पेली स्त्री बोली, "हे सज्जन, हवे जल लावी आपी मारा पतिने साजो करी दे." श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग 303

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