Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 332
________________ चोथा व्रत उपर चंद्र अने सुरेंद्रदत्तनी कथा स्नेह न ज करवो. वळी में गुरुना मुखथी परस्त्रीत्यागनुं व्रत लीधुं छे तेथी गुरुना वचनवडे हुं ते व्रतनो भंग नहिं करुं, तारे पण ए व्रत पाळq जोईए. ए व्रत पाळवाथी सर्व जातिओमां अबळा कहेवाती एवी स्त्रीओ- एज बळ विख्यात गणाय छे." व्यंतरी बोली, "स्वामी, तमने पाखंडीओए छेतर्या छे कारण के प्रत्यक्ष सुखनो त्याग करावी संशय भरेला सुखमां ललचावी नाख्या छे. जो तमारा हृदयमां 'स्वर्ग मोक्ष छे' एवो निश्चय होय, तो ते परलोके जवा सिवाय मलवाना नथी, तो आ प्रत्यक्ष सुख अहिं भोगवी ल्यो." सुरेंद्रदत्त बोल्यो, "कदि हुं ते मुनिओथी छेतरायो होईश, तो भले, तेमां तारे शुं छे? तुं तो तारे स्थाने चाली जा अने तारा हृदयने स्वस्थ कर." आ प्रमाणे कही मर्यादा जाणवामां चतुर एवो सुरेंद्रदत्त मौन धरी उभो रह्यो, पछी ते व्यंतरी तेनो दृढ निश्चय जाणी तेनी गुणश्रेणीथी राजी थई बे कुंडळ मूकीने पोताना स्थानमां चाली गई. एवी रीते उज्ज्वळ एवो धर्म पण बीजाओने रंजित करे छे. 'दोषाश्रय छतां जेनी दृष्टि तमथी लेपाती नथी, तेनो वाम स्वर पण धुवडपक्षीनी जेम सिद्धि आपनारो थाय छे. सुरेंद्रदत्त ते वेळाए हर्षथी स्वाध्याय ध्यान करवा लाग्यो अने ते व्यंतरीना देहना स्वरूपने हृदयमां भाववा लाग्यो. ते आवश्यक क्रिया करी जेवामां पोतानी शय्या जुवे, तेवामां ते शय्या उपर रहेला बे कुंडलो तेना जोवामां आव्यां. आ तरफ चंद्रना घरमां तेनी स्त्री पोताना प्रिय पतिने मरेलो देखी घाटा स्वरथी पोकार करवा लागी. स्त्रीओनो ए स्वभाव छे. ते पोकार सांभळी नगरना मध्यमां रहेलो सर्व स्वजन समूह एकठो थई गयो, तेओमां सुरेंद्रदत्त वधारे शोक करवा लाग्यो. सुरेंद्रदत्ते पोताना भाईनुं बधुं मृतकार्य कयु, आ पृथ्वीमां अति मुश्केल कार्य आवी पडे त्यारे बंधु ज उभो रहे छे. ___एक वखते कोई ज्ञानी साधुने जोई सुरेंद्रदत्ते चंद्रना मृत्युनो अने पेला बे कुंडलोनो वृत्तांत पूछ्यो. त्यारे ते मुनिए व्यंतरीए रचेलो पूर्वनो संबंध तेने कही संभळाव्यो. पोताना बंधुनो एवी रीते नाश सांभळी सुरेंद्रदत्त वैराग्यवान् थई गयो. छेवटे सर्व संगनो परित्याग करी तेणे ते ज साधुनी समीपे व्रत ग्रहण कयुं अने 1. धुवडपक्षे दोघाश्रय एटले दोषा-रात्रिनो आश्रय. अर्थात् धुवपक्षी रात्रे देखे छे. पक्षे दोषोनो आश्रय, 2. तम धुवढपक्षे अंधकार अने पक्षे अज्ञान. 3. वाम स्वर एटले धुवटपक्षे नठारो अवाज अथवा डांबी तरफनो अवाज जो रात्रे धुवडपक्षी डाबी तरफ बोले तो कार्यनी सिद्धि थाय छे एम कहेवाय छे. 302 श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग

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