Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 338
________________ छट्टा व्रत उपर रौहिणेयनी कथा जोषीनु वचन प्राणीओने माटे अन्यथा थतुं नथी. विद्याना प्रभावथी लोको जेने साव देखी शकता नथी एवो ते सर्वना घर मूकीने राजाना घरमां गयो अने राजाने ओशीकेथी खड्गरत्न ढाळ, छुरी अने दर्पण लई ते पुनः पोताने घेर चाल्यो आव्यो. तेनो पिता खरेखर तेनुं आq चरित्र शीघ्र जाणतो न हतो. कारण के "गूढहृदां पुंसां, ज्ञायते नो विचेष्टितम्" गूढ हृदयवाळा पुरुषोनुं चरित्र जाणवामां आवतुं नथी. प्रातःकाले राजाए जाग्रत थईने सर्व जोयु, त्यां ते खड्ग वगेरे चार वस्तुओ तेना जोवामां आवी नहि; पछी राजाए पहेरेगीरोने बोलावी क्रोध लावी आ प्रमाणे कडं, "अरे! तमो हमेशां मारुं घणुं द्रव्य खाई जाओ छो अने मारा सर्वस्वने चोरनारा छतां निर्भय रहेनारा चोरलोकोने केम पकडता नथी? शुं तमारामां कांई दम नथी?" तेओए राजानी आगळ आ प्रमाणे का, 'राजन्! अमे जागता रहीए छीए, तो पण चोरनुं दर्शन थतुं नथी, तो ते मोटा चोरने अमे शं करी शकीए?" ते वखते मंत्रीए का हे स्वामी, ते चोर कोई विद्यासिद्ध पुरुष छे, तो ते पराक्रमथी साध्य थशे नहिं, पण कोई उपायथी साध्य थशे, तेथी ते चोरायेली चार वस्तुओ तमारे हाथ आवशे." राजा बोल्यो, "मंत्री, एवो उपाय शो छे? ते कहो." मंत्रीए कां, "प्रभु! राजमार्गमां एक महेल करावो. पछी ते महेलनी अंदर तमारी पुत्री वासवदत्ताने राखो. ते सिद्ध पुरुष तमारी पुत्रीने वश थईने त्यां आवशे. ते पोताना बाह्य अने अभ्यंतर बंने स्वरूपने विषय रसने लईने गोपवी शकशे नहि, तेथी ते प्रगट थई आवशे. पछी पाछळथी बधुं थई आवशे." मंत्रीना कहेवा प्रमाणे राजाए कयु. रात्रि थतां रौहिणेय त्यां आव्यो. राजकुमारीने जोतां ज मोहित बनी गयो अने तेथी तेणे पोतानुं शरीर राजकुमारीने बताव्यु. कामदेवने जीतनारूं तेनुं अंग अने पेली खड्ग वगेरे चार वस्तुओने देखी ते सुंदरमालाथी शोभती राजकुमारी वासवदत्ता कामातुर थई गई. तेणीए पूछ्युं, "तमे कोण छो?" रौहिणेये उत्तर आप्यो, "जेओ रात्रे पारका घरोमां फरनारां छे, ते मांहेलो हुं छु, ते विचारी ल्यो." राजकुमारी बोली, "आ तमारी पासे खड्ग वगेरे वस्तुओ छे, ते तमे क्याथी मेळवी छे?" तेणे कडं, "ते में राजानी पासेथी हरी लीधी छे." राजपुत्री बोली, "तमारामां एवी कई सिद्धि अथवा अद्भुत बुद्धि छे के जेनाथी तमे अस्खलित पणे सर्वत्र आवो छो अने जाओ छो? ते कहो." पछी रौहिणेये पोतानुं अनुपम कुळ अने विद्यानी प्राप्तिनी बधी वार्ता कही संभळावी. "अभ्यर्थितः स्त्रिया को न, सर्व गुह्यं निवेदयत्" स्त्रीनी प्रार्थनाथी कयो पुरुष गुह्य वात न करे? पछी कामने वश थई तेणे ते सर्व राजपुत्रीने अर्पण श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग 308

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