Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti
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सातमा व्रत उपर स्वर्णशेखरनी अने महेंद्रनी कथा
जे भोगोपभोगनी वस्तुओमां वर्जवा योग्य होय ते वर्जवी अने जे वर्जी शकाय तेवी न होय, तो तेनी अंदर अमुक संख्यानो नियम धारवामां आवे, ते बीजुं गुणव्रत कहेवाय छे. ते बीजा भोगोपभोग नामना गुणव्रतने जे धर्मपरायण पुरुषो नित्ये अंगीकार करी पाळे छे, तेओ स्वर्णशेखरनी जेम दीर्घ आयुष्य अने परलोकमां सद्गतिने प्राप्त थाय छे अने जे पुरुषो ते व्रत लई तेनी विराधना करे छे, तेओ महेंद्रनी जेम अल्प आयुष्य अने परलोकमां दुर्गतिने प्राप्त थाय छे. स्वर्णशेखर अने महेंद्रनी कथा
चंदन नामना नगरमां शंखना जेवा उज्ज्वळ यशवाळो शंख नामे एक राजा पूर्वे थयो हतो. ते नगरमां यशोधवल नामे एक श्रेष्ठी रहेतो हतो. ते शेठने महेंद्र अने स्वर्णशेखर नामे बे पुत्रो हता. ते बंने युवान वयने प्राप्त थतां
एक वखते श्रेष्ठीए तेमने पूछयुं के, "तमे बने तमारा कुटुंबनो निर्वाह शी रीते करशो?” ते सांभळी तेओमां मोटा पवित्र पुत्रे पिताने कह्युं के, "हुं उत्तम देशांतरे जई वेपार करी मारा कुटुंबनो स्वकुळनी योग्यता प्रमाणे निर्वाह करीश." बीजा पुत्रे कह्युं के, "हुं बे राजपुत्रीओने परणी राजा शंखने शहेरमांथी बहार कढी मूकी राजा थईने मारा कुटुंबनो अने बीजानो निर्वाह करीश. पिताजी, तमारे तेनी शी चिंता छे?" नाना पुत्रनां आवां वचन सांभळी पिताए क्रोधथी कयुं, "अरे वाचाळ ! आवुं अमंगळ अने अयोग्य प्रत्यक्ष केम बोले छे? तुं मारुं घर छोडी दे, नहीं तो तारो देह रहेशे नहीं. तुं अमारुं दुःख लईने दूर था अने तेवी जरी तारा कुलनुं रक्षण कर." आ प्रमाणे तरछोडीने पिताए तेने बळात्कारे काढी मुक्यो. ते त्यांथी नीकळीने सारा मतवाळा नागपुर नामना नगरमां गयो. त्यां लेखशाळामां रहेला चौद विद्याओमां चतुर एवा पाठकने प्रणाम करी तेणे आ प्रमाणे कह्युं, "उपाध्यायजी, आप मने घणी उत्तम कळाओ भणावो.” ते सांभळी उपाध्याये कह्युं के, "वत्स मारी पासे खुशीथी अध्ययन कर." पछी अधिक बुद्धिवाळा तेने उपाध्याय आदरपूर्वक भणावा लाग्या. ते जोई बीजा अभ्यासीओ तेनी उपर मत्सरभाव दर्शावा लाग्या. पण ते तेमना मनने संतोष आपवा माटे तेनी दरकार करतो नहिं. लोकोमां कहेवत छे के, "समवायो जयावहः " समवाय संप छे, ते ज जय आपनारो थाय छे. ते पाठशाळामां लक्ष्मीपति राजकुमार सदा विद्याअभ्यास करवा आवतो. तेनी पासे जईने ए स्वर्णशेखर विविध जातनुं ज्ञान सांभळतो हतो. तेणे सर्व लिपिओ अने विश्वमां विख्यात एवी अनेक भाषाओ जाणी लीधी. गुरुना प्रसादथी शुं न थाय?
श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग
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