Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti
View full book text
________________
त्रीजा व्रत उपर सुरदत्त अने कमलसेननी कथा . अने असत्यवादी विमलने ते राजाए अने अन्य जनोए देशमाथी बहार काढ्यो. कमल 'ब्रह्मानी जेम कमलावास, हंसाधार अने पत्रपूगथी युक्त थई अधिक शोभतो हतो. राजाए पोतानी गोथी कमलने जे प्रसादता अने 'विमलने काळाश आपी, तेथी लोकोमां ते आश्चर्यकारी बन्यु. कमलशेठ अमृषावाद नामे बीजुं व्रत आराधी निर्मल उदयवाळो थई आयुष्यनो क्षय थतां मृत्यु पामीने सौधर्मदेवलोकमां देवता थयो. सत्यना योगथी कमल लक्ष्मीने प्राप्त थयो अने असत्यना योगथी विमल दुःखी थयो, तेथी विवेकी जनोए हमेशां सत्य भाषण करवं. जे सत्य भाषण करवाथी महत्त्व, ख्याति अने सत्कीर्ति वगेरे गुणो प्राप्त थाय छे. ।।१२६।।
इति द्वितीयंव्रतम्
जे मनुष्य पारकुं पडेलु द्रव्य सर्पना जेवू माने छे, तेने क्षुधा अने क्रोध वगेरेथी युक्त एवो सर्प पण मान आपे छे. जे पुरुषोए पूर्वे पारका हरेला द्रव्योथी पोताना हाथने बोल्यो नथी, ते पुरुषोना उत्तम हृदयने अग्नि पण बाळतो नथी. जे लेवाथी 'आ चोर छे' एम लोको कहे छे, तेवी अदत्त वस्तुने विवेकी पुरुषोए ग्रहण करवी नहीं, पण तेने छोडी देवी. जे अदत्त वस्तुने लेतो नथी, ते सुरदत्तनी जेम आ पृथ्वीमां श्लाघनीय थाय छे अने जे तेवी वस्तु ग्रहण करे छे, ते कमलसेननी जेम निंदनीय थाय छे.
सुरदत्त अने कमलसेननी कथा जंबूद्वीपनी अंदर शत्रुओए नहीं कंपावेली चंपा नामे नगरी छे. तेमां हरिचंद्र नामे एक सत्त्वगुणी राजा हतो. नगरीमा सुरदत्त नामे एक शेठ रहेतो हतो. एक समये ते शेठ सार्थ (साथ) लईने वेपार करवाने माटे देशांतर जवा चाल्यो. रस्तामां क्रूर एवा चोरोए तेनो मोटो सार्थ लूंटी लीधो. ते समये 'हवे कई दिशामां जई एम हृदयमां अकळाईने ते त्यांथी नासी गयो. ते मानरहित सूर्यपुरनगरना उद्यानमां आव्यो. त्यां काल मुखवाळो कोई पुरुष तेना जोवामां आव्यो. सुरदत्ते 1. ब्रह्मा कमलावास-कमलमां वसनार. हंस-आधार-हंसना वाहनना आधारवाळा अने पत्रपूग
ज्ञानना ग्रंथोथी युक्त छे. कमलशेठ कमला-लक्ष्मीना आवास-स्थानरूष, हंस-परमहंसयोगीजनोना आधाररूप अने पत्रपूगवाहनोना समूहवाळो छे. 2. गोथी-वाणीओथी. 3. कमल-विकाशी छे तेने प्रसन्नता आपी ते आश्चर्य. 4. विमल निर्मल छे तेने काळाश आपी ते आश्चर्य.
श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग
297

Page Navigation
1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378