Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 325
________________ बीजा व्रत उपर कमलशेठनी कथा विमल अने कमलनी कथा । __ आ भरतक्षेत्रमा विजय नामे नगर छे. तेमां नामथी अने अर्थथी कलानिधि नामे राजा हतो. ते नगरमां कमलश्री नामे स्त्री अने विमल नामे पुत्रनी साथे कमल नामे एक प्रख्यात शेठ रहेतो हतो. ते विमल नामथी ज हतो, तेजथी अने कर्मथी विमल न हतो. साचा नामने लईने लोको तेने विमल कही बोलवता हता. एक वखते द्रव्य उपार्जन करवामां तत्पर बनी ते विमल करीयाणुं लई अचल नामना मोटा शहेरमां वेपार करवा माटे गयो. त्यांथी पाछा फरतां मार्गे जळनी वृष्टि थवाथी ते अटकीने लोकोनी श्रेणिथी विराजमान एवा रत्नपुर नामना नगरमां रोकाई गयो. तेवामां विजयनगरनो रहेवासी सागर नामनो एक वणीक. घणी वस्तुओ लई त्यां आवी चड्यो. पोते एक स्थानना निवासी होवाथी विमले ते सागरने पोताने उतारे उतारी जमाड्यो अने तेणे तेना कुटुंबनी कुशळ वार्ता कही. प्रथम वरसाद विरम्या पछी पोताना नगर प्रत्ये जवानी इच्छा धरावता एवा ते चतुर सागरने ते लोभी विमले विनंती करी एक पखवाडीया सुधी रोकयो. पछी सागरे कयु के, "तो हवे तुं मारो माल वेची नाख कारण के ते जुनो माल होवाथी हवे लांबो वखत टकी शकशे नहिं." तेथी तेणे तेनो माल वेची नाख्यो, परंतु तेनुं कांईक द्रव्य दगो करीने लई लीधुं; कारण के ते (विमल) पोते द्रोही हतो. पछी तेओ बंने त्यांथी साथे चालता थया अने अनुक्रमे पोताना नगरनी । पासे आवी पहोंच्या. ते खबर जाणवामां आव्याथी कमल तेनी सामे गयो. त्रणे रस्तामां मन्या. ते वखते बुद्धिना भंडाररूप सागरे विमलने कडं. "बांधव, एक मारुं वचन सांभळो. एक आंबानु गाईं रस्ते चाले छे. तेनो हांकनार एक कोढीओ ब्राह्मण छे, ते गाडानी डाबी तरफनो बळद काणो छे अने जमणी तरफनो बळद गळीओ छे, तेनी पाछळ चालनारो एक मातंग चंडाळ छे अने तेनी एक रुष्ट स्त्री पाछळ चाली आवे छे. ते दुःखी स्त्री हमणां ज एक पुत्रने जन्म आपशे." ते सांभळी विमले का, "ते आ बधुं खोटुं कर्तुं छे." सागर बोल्यो, मुनिवाणीव वचो मे निष्फलं न हि ।।१०।। "मुनिनी वाणीनी जेम मारुं वचन निष्फळ नथी साचुं छे." विमल बोल्यो, "जो आ तारुं कहेवू सत्य होय, तो जेटली मारी लक्ष्मी छे, ते तारी थाय अने खोटु होय, तो जेटली तारी लक्ष्मी छे, ते मारी थाय." सागरे तेनुं ते सर्व वचन कबूल कयुं अने ते बंनेए तेमां उत्तम शेठ कमलने साक्षी राख्यो. पछी ते त्रणे उतावळा चाल्या त्यां पेलू गाईं सामे मन्यु. 1. नामथी कलानिधि अने कलाओनो निधि-भंडार ए अर्थथी पण हतो. श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग 295

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