Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 280
________________ वासुदेव चरित्र पुरुषोने सुकृतनुं आचरण क्यांथी होय? एक वखते ते बंने राजमित्रो पोतपोताना राज्यनो दाव करी जुगार रम्या, तेवामां अभाग्यने लईने राजा धनमित्र सर्व लोकोनी साक्षीए पोतानुं राज्य हारी गयो. राज्य वगरनो थई रहेलो ते राजा जल वगरना मत्स्यनी जेम दीन बनी गयो, पराधीन अने परिवार वगरना ते राजानो बीजाओ तिरस्कार करवा लाग्या. पछी बलवान् एवा बलीराजाए तेने नगरमांथी काढी मूक्यो. ते राज्यभ्रष्ट थयेलो राजा रांकनी जेम पोतानुं मुख लईने नासी गयो. आ दुनियामां ज्यां सुधी स्वार्थ सिद्ध थाय, त्यां सुधी ज मित्रता छे, परंतु ज्यारे स्वार्थ सिद्ध न थाय तो ते ज वखते मित्र होय ते पण लोकोमां सदाने माटे शत्रु ज थई पडे छे. ज्यारे धनमित्रने निर्धनपणुं आव्युं, त्यारे बलीराजाए तेनी मित्रता छोडी दीधी, ते उपरथी तेनुं धनमित्र एवं नाम कृतार्थ थयुं. ते राजा धनमित्रनो स्वजन वर्ग हवे बलीराजानी सेवा करवा लाग्यो, विवेकी एवा पण लोको उगताने वंदना करे छे, ए वात स्पष्ट छे. जे 2 अपरिमित दान करनार अने बली होय तेनी सेवा कोण न करे? लक्ष्मीना पति, लोकोना आधार रूप अने जनरक्षक विष्णु पण बलीराजाना द्वारपाळ थईने रह्या छे. राजा धनमित्रना अंतःपुरनी स्त्रीओ पछी पोतपोताना पिताना घरमां चाली गई, स्त्रीओने ज्यारे दुःख आवे छे, त्यारे तेओने पितानुं घरं शरणरूप थाय छे, एम विद्वानो कहे छे. सूर्य जेनो रसोयो हतो अने जे सत्य प्रतिज्ञावाळो कहेवातो हतो, एवो नळराजा पण द्यूतना व्यसनथी विपत्तिने पाम्यो हतो. सत्यवादी युधिष्ठिर पण एज व्यसनने लईने भीम तथा अर्जुन वगेरेनी साथे युक्त थई राज्य छोडीने वनमां वस्यो हतो. एवी रीते आ पृथ्वीमां विख्यात एवा अनेक राजाओ पण द्यूतना व्यसनथी दुःखी थयेला छे तो पछी बीजा राजाओनी शी वात करवी ? नीति शास्त्रमां कह्युं छे के, "वैर, 4 वैश्वानर, व्याधि, वाद अने व्यसन ए पांच वकार जो वध्या होय तो ते महान् अनर्थ करनारा थाय छे.' यूथमांथी भ्रष्ट थयेला मृगनी जेम कई दिशामां जावुं, एम बहावरो बनी वनमां भमता ते धनमित्रे विवेकी अने अमृतना निधि जेवा एक मुनिने जोया. जेम खारा समुद्रमां मीठा जलना स्थानने मेळवी तृषातुर माणस हर्षित थाय, तेम ते मुनिने जोईने हर्षित थयो. कह्युं छे के, आ संसार रूपी 1. धननो ज मित्र अर्थात् धनने लईने ज मित्रवाळो. 2. बलीराजाए वामन रूप विष्णुने पृथ्वीनं दान करेलुं ते उपरथी विष्णु प्रसन्न थई तेना द्वारपाळ बन्या हता. 3. नळराजानी रसोई सूर्यना तापथी थती हती. 4. वैश्वानर - अग्नि 5. वैरवैश्यानरव्याधिं वादव्यसनलक्षणाः । महानर्थाय जायन्ते, वकाराः पञ्चवर्द्धिताः || ४९० || श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 250

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