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श्री विमलनाथ प्रभुनी देशना देवता अने नारकीना अंतरे त्रण भवे सिद्धि थाय छे अने जो मनुष्य युगलीयो थाय, तो ते देवता थई पछी मनुष्य थाय छे अने ए रीते जघन्यपणे पण क्षायिक सम्यक्त्ववडे चार भवे सिद्धि थाय छे, तेथी ते साते कर्मोनी विशेष स्थितिनो क्षय करी सांप्रतकाळे ते सम्यक्त्वनो आदर करो. ए सम्यक्त्व छतां पण जो चारित्र न होय तो कदि संसारी जीव नारकी पण थई जाय छे. तेथी हे भव्यो! तमे चारित्रने भजो. आ पृथ्वी उपर निश्चयनय वडे एवो मत सिद्ध थयो छे के चारित्रनो वध करवाथी ज्ञान अने सम्यक्त्वनो विनाश थई जाय छे. सर्वार्थनी सिद्धिने आपनारा ते चारित्रना घणा भेदो छे तेमां यथाख्यात चारित्रवडे मनुष्योने अवश्य सिद्धि प्राप्त थाय छे. जे सम्यग्ज्ञानवाळो थई सदाचारने अंगीकार करी स्वाभाविक रीते यथोद्दिष्ट चारित्र आचरे-पाळे ते यथाख्यात चारित्र कहेवाय छे. आ चारित्रादिक रत्नत्रयीवडे जीव बळेली दोरीना जेवा चार अघाति कर्मोवाळो घनघातिकर्मोथी मुक्त बनी शुद्धिने धारण करी केवळज्ञानने प्राप्त करे छे. पछी ते सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी थई केटलोक वखत आ लोकमां रहे छे. पछी ते वेदनीय, आयुः, नाम अने गोत्रकर्म क्षीण थतां गतिना प्रयोगवडे एरंडीना बीजनी जेम उर्ध्वलोके चडे छे. त्यां समश्रेणी वडे लोकाग्रमा जईने रहे छे. आकाश विद्यमान छतां जे ते (लोकाग्रथी आगळ) उर्ध्वभागे जता नथी तेनुं कारण ए छे के, लोकाग्रथी आगळ अलोकमां धर्मास्तिकाय द्रव्यनो अभाव छे. ते सिद्ध जीव सर्वदेहथी रहित, अनंत चतुष्टयने प्राप्त करनार अने प्राण, रस, स्पर्श, गंध अने वर्णथी रहित होय छे. ते चारित्री नथी तेम अचारित्री नथी, ते असंज्ञी नथी तेम संज्ञी पण नथी, ते पोताना शरीरना त्रीजा भागे उणा एवा आकाशना अवगाहनने प्राप्त थयेल छे. मृत्युकाळ वखतनी निजकाया प्रमाण जीवप्रदेशने भजवावाळा होय छे. ज्ञानरूपी आदर्शमां रहेली सर्व विश्वनी वस्तुओना स्वरूपने ते जाणे छे. ते अनंत सिद्धोथी युक्त छे तेनी स्थिति सादी अने अनंत छे. ते स्थिर, चिदानंदना सुखना स्वादथी सुंदर अने भय रहित छे. "अहो जनो! हे भव्यो! जैन शासनमां जे सत्साधनवडे जीव आवो सिद्ध बुद्ध बने छे; ते सम्यग् ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप त्रण रत्नोने तमे अंगीकार करो. जो कदि ते रत्न सर्व थकी लेवानी शक्ति न होय, तो तमे प्रथम तेनो देशथी आदर करो, के जेनाथी तमारो मनुष्य जन्म निष्फळ न थाय. ते देशथी ग्रहण करवामां द्वादश व्रतनी अंदर शुद्ध हृदयवाळा श्रावकोने षट्भंगी प्रमुख आगारवाळा अनेक प्रकार छे. जे व्रत पालवानी जेवी शक्ति होय ते प्रमाणे
श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग
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