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श्री विमलनाथ प्रभुनी देशना
अद्भुत स्थान राखी तेना अंतरना भागमां अंजलि जोडी हर्षथी सुखे बेठी, ज्योतिषी, भुवनपति अने व्यंतरोनी उत्तम स्त्रीओए दक्षिण द्वारे प्रवेश करी नैर्ऋत दिशामा पोतानो वास कर्यो.
देवताओ पश्चिम द्वारथी समवसरणमां आवी वायव्य दिशामां जिनना ध्यानमां तत्पर थईने रह्या. कल्पना देवताओ अने पुरुषो तथा स्त्रीओ उत्तर द्वारे प्रवेश करी अनुक्रमे ईशान दिशामां स्थिति करीने रह्या. सिंह, वाघ वगेरे प्राणीओ मत्सरभाव छोडी दई अने श्री जिनवाणीमां आदर करी सुवर्णना वप्रमां रह्याः रूपाना वप्रमां उत्तम देव, दानव अने मनुष्योना वाहनो स्थिति करी. तेमनी ए स्थिति (मर्यादा) सदाने माटे ए ज होय छे.
संसारपक्षे प्रभुनो पुत्र अरिमर्दन राजा उद्यानपाल पासेथी प्रभुने केवळ ज्ञान उपजेलुं जाणी परिवारसहित तरत त्यां आव्यो. ते समवसरणमां उत्तर द्वारे प्रवेश करी अने प्रभु नमस्कार करी तेणे पोतानी बुद्धि प्रमाणे प्रभुने आ प्रमाणे विज्ञप्ति करी – ।।१०८४ ।।
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"स्वामी, जे जल पशुपक्षिओना गणोए उच्छिष्ट करेलुं अने कादव उपर रहेनारुं छे, तेवा जलवडे निर्मल एवा आपनी केम पूजा थाय? जे पुष्प भमराओए सुघेलुं, जीवडाओना समूहथी युक्त अने मलिन अंगवाळा माळीओए वाडीमांथी लावेलुं होय ते पुष्प आपने योग्य केम गणाय? जे रंगराग सामान्य लोकोना हाथथी अपवित्र थयेलो अने जे स्वभावथी ज सत्वर दुर्गंधी बनी जाय तेवो होय छे, ते अंगराग उत्तम केम होय? जे धूप बधो धूमाडो रूप, अग्निमांथी उत्पन्न थयेलो अने गंधनी रजरूप अगरुनो बनी सर्व लोकोने सरखो होय छे ते धूप आपनी पासे उंचो केम गणाय? त्रण जगतमां उद्योत करनारा एवा तमारी आगळ दीवानुं शुं काम होय छे? जे दीवो पात्रने आधारे रहे छे अने तमो उंचा प्रकारना पात्रना अधीश छो. वळी लोको आप प्रभुनी आगळ अपूर्व वस्तुनी भेट धरे छे, परंतु आ जगतमां तेवुं कांई नथी के जे तमारे न होय, हे प्रभु! मारुं हृदय सदा रागद्वेषथी आक्रांत छे अने तमे पोते वीतराग छो, तो पछी मारे तमारुं ध्यान क्यां करवुं ? असत् गुणोनुं आरोपण करवुं तेवी स्तुती तो कोईथी न थाय अने तमारामां तो तेवा अनंत गुणो छे, तो पछी असत् गुणोने कोण कहे? हुं मलमूत्रादिवाळी कायावाळो छं अने तमे निर्मल छो, तो पछी हुं तमोने शी रीते सेवी शकुं ? हे प्रभु, फक्त हुं तो तमारी आज्ञा मारा उत्तमांग- मस्तकवडे वहन करीश. तमारा आगममां गृहस्थोने द्रव्यपूजा करवानी कहेली छे, तो ते लोकोमां श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग
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