Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 322
________________ प्रथम व्रत उपर नृपशेखरनी कथा छे, अनेक सद्विद्याओने साधेली छे. हुं निर्दोष जैन धर्मने पाळनारो छु.' हुं गईकाले आवश्यकविधि करी अने पंचनवकार- स्मरण करी धर्म ध्यान धरतो सूतो हतो, ज्यारे रात्रिनो छेल्लो पहोर थयो, तेवामां गांधारी वगेरे देवीओए आवी मने कडं के, "अरे भाई! तारुं आयुष्य अल्प छे, तेथी तुं पोतनपुरना राजा. नृपशेखरने अमोने निःशंक थई आपी दे अने अमारा हृदयमां हर्ष उत्पन्न कर." तेथी हे सद्बुद्धिना निधान, तमो ते मारी सर्व विद्याओ ग्रहण करो. "सुपात्रे योजिता विद्या, द्वयोरपिशुभप्रदाः ।।३९।।" सत्पात्रमा आपेली विद्या आपनार अने लेनार बंने शुभदायक थाय छे. पछी कुमार नृपशेखरे ते विद्याओ ग्रहण करी अने बहार जईने ते साधी लीधी. जेवामां ते विद्या साधीने घेर आवतो हतो, तेवामां सूर्य अस्त थई गयो, एटले नगरनो मुख्य दरवाजो बंध थई गयो. पछी ते कुमार बहार आवी एक वृक्षना मूलमां सावधान हृदयवाळो थई जागतो बेठो, ते वृक्षमा रहेला एक प्रेतना मुखथी आ प्रमाणे शब्द सांभळवामां आव्यो. "श्रीकुंडनपुरना राजा नरकेशरीने कलाओमां कुशल सौभाग्यमंजरी नामे पुत्री छे, तेणीने नेत्रोनी पीडा थई छे, तेथी ते अग्निमां प्रवेश करशे." आ वखते ते प्रेतनी स्त्री ते सांभळी शोकातुर थईने बोली-"स्वामी आ पृथ्वी उपर नेत्रनी पीडाने हरनारूं औषध शुं नहिं होय के जेथी ते बीचारी मरवा तैयार थई?" प्रेते कडं, "प्रिये! आ पृथ्वी उपर एवां घणां औषधो छे, परंतु तेने जाणनाराओ दुर्लभ छे. जो आ वृक्षना पत्रो आंखे बांधवामां आवे, तो नेत्रोनी खेदकारक पीडा तरत ज नाश पामी जाय." आ वचनो सांभळी स्त्री बोली-"कांत! तमे ते राजपुत्रीना नेत्रो उपर आ पत्रो बांधो के जेथी तेणीना नेत्रोनी पीडानो क्षय थई जाय." प्रेत बोल्यो "प्रिये! हीन जातिने लईने माराथी लोकोनो उपकार थई शकतो नथी. सर्व प्राणी उपर उत्तम पुरुषो ज उपकार करे छे अने अधमलोको जे अपकार करे छे, ते ते तेमना वर्ण जातिनुं फल छे." आ प्रमाणे ते प्रेत दंपतिनुं वचन सांभळी उपकार करवानी इच्छाथी ते कुमारे यत्न करी ते वृक्षनां पत्रो लीधां. पछी ते विद्याना बलथी सत्वर कुंडिनपुरमा आवी पहोंच्यो, त्यां तेणे वागता पटहनी उद्घोषणा आ प्रमाणे सांभळी. "जे कोई पुरुष राजपुत्री सौभाग्यमंजरीने नीरोगी करे, तेने राजा ते पुत्री सहित पोतानुं अधुं राज्य आपशे." आ सांभळी ते चतुर कुमारे हर्षथी पटहनो स्पर्श कर्यो परोपकारी पुरुषो कंई छाना रहेता नथी. पछी राजपुरुषो तेने तरत राजमंदिरमा लई गया, त्यां अग्निमां प्रवेश करवा तैयार थयेली 1. उत्तमैरुपकारो यत्क्रियते सर्वजन्तुषु । अधमैरपकारस्तु तद्वर्णजनितं फलम् ॥४९।। श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग 292

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