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श्री विमलनाथ प्रभुनी देशना पाश अने बाण धरनारी अने बे सुंदर वामभुजामां नाग अने धनुष्य राखनारी विदिता नामनी देवी ते विमलनाथ प्रभुनी शासनसेविका देवी थई. जेमना जन्म समये इंद्रोए मेरुपर्वत उपर महोत्सव को हतो, जेमना दीक्षा समये गृहमां अने केवळज्ञान वखते वनमा उत्सव कर्यो, तेमां कांई पण आश्चर्य नथी. कारण के ए क्रम परंपराथी चाल्यो आवे छे. पण तेनी पूर्वे सुंदर सुवर्णनी वृद्धिथी व्याप्त थयेला लोकमां उत्सव थयो, ते लक्ष्मीने आश्रित एवा श्री विमलनाथ प्रभु सर्व स्थळे तमोने लक्ष्मीने अर्थे थाओ.
॥ इति श्री तपोगणनायकश्रीरत्नसिंहसूरिना शिष्य भट्टारक .. श्री ज्ञानसागरसूरिना रचेला श्री विमलनाथचरित्र महाकाव्यमां श्री विमलनाथ प्रभुना जन्म, दीक्षा अने केवळज्ञानना वर्णनरूप चोथो सर्ग समाप्त थयो ।
इति चतुर्थ सर्ग
श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग
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