Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti
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श्री विमलनाथ प्रभुनी देशना तेवा भांगाथी ते व्रत ग्रहण करो, जेथी सात-आठ भवे तमारी मुक्ति थशे. शुद्ध साधु, श्रावक अने संवेगी पक्षने अनुसरनारा ए त्रणे मुक्ति मार्गे जनारा कह्या छे अने मुत्कळ गृही, केवळ द्रव्य लींगी अने कुलिंगी ए त्रणे संसार मार्गे जनारा कह्या छे. तेथी हे भव्यजनो! आ संसारना असार संचारना प्रकारोने छोडी दई विचार सहित एवा सदाचारना भावने भजो." आ प्रमाणे श्री विमलजिननी पांत्रीश गुणवाळी वाणी सांभळीने सर्व जीवो हर्षवाळा अने सुख शाताने प्राप्त करनारा थई गया. प्रभुनी आ देशनाथी प्रतिबोध पामेला केटलाएके शुद्ध दीक्षा ग्रहण करी, केटलाएक श्रावकधर्मने प्राप्त थया अने केटलाएक सम्यक्त्वने प्राप्त थया. ते प्रभुए पोताना शिष्योमा मंदर वगेरे छप्पन साधुओने गणधर पदवी आपी हती. तेओए प्रत्येके तत्काळ उत्पाद, विगम अने ध्रौव्य नामना त्रण पदो ग्रहण करी अखंडित एवी द्वादशांगी रची हती. ते समये एक योजन प्रमाण क्षेत्रमा पण कोटीगमे, देव, दानव, मानव अने तिर्यचो पोतपोताना वाहनो सहित समाई गया हता. तेओनी भाषा प्रमाणे प्रभुनी वाणी एक योजन सुधी संभळाती हती. प्रभुना मस्तकना पृष्ठभागे भामंडळ आवी रह्यु हतुं. प्रभुना कर्मोना क्षयथी अगियार अतिशयो उत्पन्न थवाथी सवासो योजन प्रमाण देशमा रोग, वैर, मारी, टीड प्रमुख, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, स्वचक्र भय, परचक्र भय अने दुकाळ थता नहीं. आकाशमां धर्मचक्र, ऊँचो इंद्रध्वज, चरण न्यासमां कमळो, चतुर्मुख अंग, त्रण वप्र, चामरो, चैत्यवृक्ष, पादपीठ सहित सिंहासन, त्रण छत्रो, रत्नमय ध्वज, दुंदुभिनो ऊँचो ध्वनि, कांटाओ अधोमुख, पंखीओ प्रभुने प्रदक्षिणा देतां फरे, वृक्षमाथी अतिशय पुष्पवृष्टि, सुगंधी जळनो वरसाद, 'पार्श्वभागे जघन्यपणे चार प्रकारनी देवकोटी, सदा अनुकूळ पवन अने गोचर-अर्थने आपनारी (सानुकूळ) छ ऋतुओए सर्वे ओगणीश अतिशयो देव निर्मित होय छे. आ प्रमाणे चोत्रीश अतिशयोथी युक्त अने केवळज्ञाने सहित एवा ते विमलनाथ प्रभु समग्र विश्वने हर्षदायक थया. मयुरना वाहनवाळो, दक्षिण भुजाओमां खड्ग, पाश, बाण, फळ, चक्र अने अक्षसूत्र धरनारो, वाम भुजाओमां अभय, नकल, धनुष्य, आर फलक अने अंकुशने धरनारो षण्मुख नामनो श्वेतवर्णी यक्ष ते प्रभुना शासननो सेवक देव थयो. हरिताळना जेवा वर्णनी, पद्मना आसनवाळी, बे दक्षिण भुजामां 1. प्रभुनी सेवामा ओछामां ओछा चारे निकायना क्रोड देवो रहे छे. 2. घट्ऋतुओ समकाळे फळे छे.
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श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग

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