Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti
View full book text
________________
स्वयंभू वासुदेवनुं चरित्र स्वयंभू वासुदेव पोताना बंधु भद्रकनी साथे तेनी सामे सुखे चडी आव्यो. ते पोताना देशना सीमाडा उपर जईने बल सहित उभो रह्यो. ते वखते पोताना सैन्यने प्रेरतो मेरक पण त्यां आव्यो. ते समये सभामां घणो आदर पामनारा धीर नरोए वीरनी आज्ञाथी शत्रुओनो क्षय करवा देवनी साक्षीए रणभूमिनो आश्रय कर्यो. बंने सैन्य कलि (रण) कर्मवडे युक्त थई एकठा मल्या. तेवामां शत्रुओए जेमां दुर्जनता बतावी छे एवं पोतानु केटलूक सैन्य दीनता पामेलं जोई विचक्षण एवा स्वयंभूए पोते पोतानी सुजनता दर्शावनारो शंख फुक्यो. ते सांभळतां ज सिंहनो बुबारव सांभळी जेम सर्व गजेंद्रो त्रास पामे, तेम मेरकना योद्धाओ रणांगणथी त्रास पामी गया. ते वखते देवता जेवो अति बलवान एवो मेरक ते युद्धमां सर्व शस्त्रो साथे एकलो टकी रह्यो. स्वयंभू अने मेरकनी वच्चे दंडादंडी, खड्गखड्गी, केशाकेशी अने शराशरि युद्ध चाल्यु. तथापि अति बलवान् स्वयंभूनो युद्धमां भंग न थयो; त्यारे अर्धचक्रीए पोताना शत्रुनो नाश करनारा चक्रनुं स्मरण कयु. तेना पापनो उदय थतां पण कांतिना पात्र रूप अने शत्रुओनी उत्तम लक्ष्मीने छेदनारं ते चक्र स्मरण करतां ज तरत तेना हाथमां आवी हाजर थयु. वैरीओना चक्रने भय आपनारुं ते चक्र हाथमां आवेलुं जोई हर्ष पामेला मेरके बलवाळा स्वयंभूने कहूं, "अरे! तने 'बंने रीते बाळक जाणीने में आटली वार फक्त क्रीडामात्र युद्ध कयुं हतुं, हवे साचुं युद्ध करुं छु. आजे हुं तारुं मस्तक छेदी नाखीश, तेथी तुं तत्काळ नाशी जा. बाळकोने अने चोरोने नासवामां शी लाज होय?" स्वयंभू बोल्यो, "जो तें क्रीडायुद्ध कयुं होय, तो तुं पोते ज बाळक ठर्यो. कारण के क्रीडा करवी ए बाळकनुं कार्य छे अने कारणमांथी कार्य थवानो संभव छे. शत्रुओनी लक्ष्मीने ग्रहण करनारा धीर पुरुषो जो चोर कहेवाता होय, तो तुं चोर पण छे. कारण के तने कोणे लक्ष्मी आपी छे? तेथी तुं आ चक्र छोडीने चाल्यो जा. पाछळथी जई शकीश नहिं. आज चक्र ज्यारे हुं छोडीश, त्यारे तारो अंत आवी जशे. कदि ए चक्रनो तने मनमां घणो गर्व होय तो ते छोड के जेथी आपणा बंनेनं बलाबळ जाणवामां आवे." आ वचनो सांभळी मेरके राज्यने आपनारा 'स्वचक्रनी जेम हाथमा रहेढं ते चक्र स्वंयभूनो वध करवा माटे फेरवीने छोड्यु. ।।१०००।। ते छुटेलुं चक्र स्वयंभूना हृदयमा लाग्युं, ते घटित ज थयु. कारण के सत्-पुरुषोने ईष्टजननो प्रथम मेळाप थतां एम ज बने छे एटले ईष्टजन प्रथम हृदयमां लग्न थई जाय छे. ते चक्र कठोर होवाथी स्वयंभूने ते 1. वयथी अने अज्ञानपणाथी एम बे रीते बाळक. 2. स्वचक्र एटले पोतानो पक्ष.
श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग
280

Page Navigation
1 ... 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378