Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti
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स्वयंभू वासुदेवनुं चरित्र पुत्रने कोई माता कहेवा लागी के, "पुत्र, हुं पूर्वे वीरपत्नी कहेवाती तो तुं हवे मने वीर प्रसू-वीर पुत्रने जन्म आपनारी कर." कोई प्रेमी पत्नी पोताना पतिने कहेवा लागी के, "स्वामी, जगत्नी स्त्रीओने आश्चर्य करनारी हुं वीरपुत्री तो छु, हवे तमारे रणभूमिमां एवं काम करवू के जेथी मारी ख्याति एक वीरपत्नी तरीके थाय. तमारे घरनी कांईपण चिंता करवी नहिं. तृष्णाने हरनारी, हाथमां अमृत धरनारी अने संतापनो समूह निवारनारी थईने हुं जीवितमां अने मरणमां पण तमारा पृष्टने छोडीश नहि." आ वखते कोई वृद्ध पिता रणभूमिमां जवानी इच्छा करतां तेना युवानपुत्रे अंजलि जोडीने आ प्रमाणे तेने कर्दा, "तात! आवा वृद्धपणामां रणभूमिनी दीक्षा लेवी मुश्केल छे, तेथी आपने घेर ज रहेवू ठीक छे. हुँ सशक्त होवाथी युद्धमा जईश." कोई पिताए पुत्रने कयुं के, "वत्स, तारी वार्ता तो रही, पण आपणा बधा कुळनी लाज आणजे-राखजे." रणभूमिमां कायर थयेला कोई बंधुने तेना बंधुए कह्यु के क्षत्रियोने 'धारातीर्थ ज तेना पापोने हरनारुं छे. स्त्रीना मोहने लईने घेर रहेवानी इच्छा करनारा कोई पुरुषने बीजाए कह्यु के, "ए अबळा स्त्री कोण मात्र छे? रणभूमिमां मरवाथी स्वर्गनी घणी स्त्रीओ तने वरशे." द्रव्यना मोहथी घर छोडवाने अशक्त एवा कोई पुरुषने बीजाए कह्यु के, "ए द्रव्य तो नजीबुं छे, युद्धमां तो तने दिव्यलक्ष्मी प्राप्त थशे." आ प्रमाणे विविध-आलापोथी प्रेरायेला सुभटो पोताना घर छोडी युद्ध करवाने माटे रसवडे एकाग्र मनवाळा थई चालता थया. कुंभस्थळरूप गंडशैलवाळा अने मदना झरणाथी मनोहर एवा अनेक गजेंद्रो जाणे जंगम पर्वतो होय तेवा देखावा लाग्या. फीण सहित विविध प्रकारना आवर्त्तवाळा वेगथी पृथ्वी उपर व्याप्त थता एवा घोडाओ जाणे समुद्रना तरंगो होय तेम पृथ्वीमां प्रसरवा लाग्या. घोटक-घोडानी आली-श्रेणीवडे युक्त अने उत्तम-अजिरथी विभूषित एवा रथो जाणे चालता घरो होय तेम तत्काळ चालवा लाग्या. 'फलनी इच्छावाळा, शाखा साथे मळेला अने स्तोकलोभी एवा पेदलो वानरनी जेम उछळता चालवा लाग्या.
आ प्रमाणे आवता मेरक राजाने हेरूलोकोना कहेवाथी जाणी लई 1. खड्गनी धार उपर मरवू ते धारातीर्थ. 2. गंडशैल एटले पर्वत पक्षे मोटा पथरा. 3. पर्वतपक्षे पाणीना झरणां. 4. आवत-एक जातनी घोडानी शरीरपरनी निशानी अथवा याळ. तरंगपक्षे आवर्त एटले घुमटी. 5. घोटक-घोडा अने बरपक्षे ओरडा. 6. अजिररणभूमि अने घरपक्षे आंगणुं. 7. पेदलपक्षे विजयन फळ. 8. पेदलपक्षे टुकडी. वानरपक्षे डाळीओ. 9. स्तोक-थोडं वानरपक्षे गुच्छ. श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग
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