Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 293
________________ वासुदेव चरित्र-लोभाकर अने लोभानंदीनी कथा वात आगळ चलावी-"पछी स्वजन वगरना हुं आ शून्य नगरमां चारे तरफ फरी राजद्वारमा गयो. राजमहेलना सातमा माळ उपर चड्यो, त्यां मारा मोटा बंधुनी विजया नामनी स्त्रीने में एकली रहेली जोई. तेणीए आसन वगेरे आपीने मारो विनय कर्यो. पछी में तेणीनो वृत्तांत पुछ्यो, एटले तेना नेत्रोमां अनु लावी आ प्रमाणे बोली-"पूर्वे पवनथी पवित्र एवा आ शहेरना उपवनमां मासे मासे उपवास करनारो कोई एक तापस आव्यो हतो. ॥७००।। एक वखते तमारा बंधुए तेने पारणाने माटे आमंत्रण आप्युं, राजानी आज्ञाथी ते जमवा बेठो त्यारे में तेने पवन नाखवा मांड्यो, ते वखते प्रथमथी ज नहिं दमन करेलुं तेनुं हृदय तरत मारी उपर भमवा लाग्यु. जेमणे ब्रह्मस्वरूप जाण्युं न होय तेवा पुरुषो एवा ज होय छे. वळी का छे के, "निराहार मनुष्यना विषयो निवृत्त थाय छे अने आ व्यक्तिनो राग मात्र शुष्क व्यक्तिने जोइने नष्ट थाय छे [पण रसवान व्यक्तिने जोइने पुनः प्रगट थाय छे" ते ज रात्रे ते विषयी तापस घो नांखवानो प्रयोग करी मारा महेलमां चडी आव्यो, कामान्धानां कुतो लज्जा, धर्मो यमनियमे तपः ।। कामांधने लज्जा क्याथी होय? तपमा यमनियम होय तो ज धर्म कहेवाय छे. तेणे कामनी इच्छाथी सामदंडना वचनोथी मने कहेवा मांड्यु, में ते पापीने घणो समजाव्यो छतां पण तेणे पोतानो अध्यवसाय छोड्यो नहिं. आ वखते मारा स्वामी द्वार उपर आवी चड्या. तेणे ते बधुं सांभळी ते अधम तापसने पकडीने मजबूत बांधी लीधो; पछी पोताना आज्ञाकारी माणसोनी पासे विविध प्रकारे तेने विडंबना पमाडी चोरनी जेम मराव्यो. तेना एवा कर्मनुं फळ एवं ज होय. ते तापस मृत्यु पामीने तेवा नठारा कर्मथी राक्षस निकायमां व्यंतर थई अवतो. प्राये करीने तेवा माणसोनी गति एवी ज होय छे. ते राक्षसे विभंग ज्ञानने लईने पोतानो पूर्वभव जाण्यो एटले तेणे जाते आवी तमारा बंधुनो नाश कर्यो. ते जोई ते दुष्टना कष्टना भयथी आकुल-व्याकुल बनेली सर्व प्रजा जीव लईने नासी गई, तेने लईने आ तमारुं नगर हाल शून्य थई गयुं छे. हुं पण पृथ्वी उपर पडती-पडती नासती हती, तेवामां ते राक्षसे मने धीरज आपवा कह्यु के, "तुं अहिं रहे तारे भय राखवो नहिं जो तुं मारी बुद्धिथी मने छोडीने बीजे स्थळे जईश, तो हुं तने पकडीने अहीं लावीश तेथी तुं अहिं निराकुळ थई रहे." तेनां आवा वचन उपरथी हुँ एकली अहीं रही छं. ते राक्षस दिवसे क्यांय जाय छे अने रात्रे पाछो पुनः आवे छे. एवी रीते मारा दिवसो चाल्या जाय छे. में मारी भाभीने कडं के, "तमे ते राक्षसनी कांई मर्मनी वात होय तो ते मारी आगळ प्रकाशित करो, जेथी श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 263

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