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शीलव्रत उपर शीलवतीनी कथा मद हरवाने अने मारुं शील साचवी राखवाने में मारी बुद्धिथी तेओना अनर्थना मूलरूप धनने लई लीधुं." शीलवतीना आ वचन सांभळी राजा बोल्यो, "हे क्षमानिधि, आ तो में ज तमारी उपर अनर्थ कर्यो, ते मारो अपराध क्षमा करो." शीलवती बोली, "हे नराधीश! आ तमारो अपराध नथी, तेम आ मंत्रीओनो पण अपराध नथी; कारण के संसारी जीवो ज एवा होय छे. अंतरना छ शत्रुओना वर्गमां कामने प्रथम मानेलो छे; कारण के तेने लईने बीजा क्रोध वगेरे उत्पन्न थाय छे. का छे के, काम, क्रोध, लोभ, मान, हर्ष अने मद ए अंतरना छ शत्रुओनो जे वर्ग छे, तेनो त्याग करवाथी माणस सुखी थाय छे. जे बहारना शत्रुओ छे तेनाथी ए अंतरना शत्रुओ बलवान् छे. 'व्याकरणमां पण बहिरंग विधिथी अंतरंग विधि बलवान् छे. एम कर्दा छे के धर्मथी अर्थ द्रव्य नामनो पुत्र उत्पन्न थाय अने ते अर्थ द्रव्यना मूलमांथी कामरूपी पुत्र उत्पन्न थाय छे ते कामने लईने तेनो पिता अर्थ द्रव्य क्षय पामे छे अने पछी तेनो पितामह पितानो पिता धर्म पण क्षय पामे छे. पुरुष स्वदारा (स्त्री) संतोषी थवाथी शुद्धने सौने बचावनार थाय छे अने परस्त्रीमा प्रीतिवाळो थवाथी ते आ विश्वनी अंदर निर्धन, निर्बळ अने रति वगरनो थई रहे छे." ईत्यादि विविध वाक्यो वडे शीलवतीए राजा अरिदमन अने ते चारे मंत्रीओने प्रतिबोध आपी उत्कृष्ट एवी शीलवतीनी संपत्तिने प्राप्त करनारा करी दीधा. ते पछी कामांकुर वगेरे ते मंत्रीओए शीलवतीने कर्वा के, "तमोए अमोने धर्मदान आप्युं छे, तेथी तमे आजथी अमारा गुरूणी छो. पाषाणना जेवा अमोने उंचे प्रकारे संताप आप्या सिवाय अमारी अत्यंत कल्याणता अने विश्वमा श्रृंगारता क्यांथी प्राप्त थाय? "पछी राजाए ते वखते पोतानी बहेननी जेम शीलवतीने मान आपी अने वस्त्र अलंकारोथी सत्कार करी तेणीने घेर पहोंचाडी. ।।३७१।।
राजा अरिदमन वगेरे लोको पोतपोताना धर्ममां तत्पर थई वर्त्तता हता, तेवामां दमघोष नामना सूरि घणां साधुओना परिवार साथे त्यां आवी चड्या. ते खबर जाणी राजा, चार मंत्रीओ, मंत्रीराज अजितसेन अने शीलवती सती ते सर्व श्री गुरुने वंदना करवा गया गुरुए हितकारी अने निर्मल एवो धर्मोपदेश आप्यो. 1. व्याकरणमां शब्दनुं रूप सिद्ध करवामां जे नियमो लागे छे. तेमां जे नियम शब्दना अंदरना
भागने लागु पडे ते अंतरंग विधि अने बहारना भागने लागु पडे ते बहिरंग विधि कहेवाय
छे. ज्यां ते बंने नियमो लागु पडता होय त्यां अंतरंग नियम बळवान् थईने लागु पडे छे. 2. कल्याणता-सुवर्णता अथवा मंगलिकता अने विश्वमां शृंगारता. पाषाणने संताप-तपाववाथी तेमांथी सुवर्ण नीकळे छे अने ते विश्वमा शृंगाररूपे वपराय छे.
श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग
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